राष्ट्रीयता और समाजवाद अधिकारोसे वंत्रित हो गये है और जनताके आर्थिक भारको कम करनेके लिए बनाये जानेवाले कानूनो और किसान-मजदूरोमे वढ़ती हुई श्रेणी-चेतनाकी बदौलत जिनकी यायिक सुविधाोपर ग्राघात हो रहा है । इन मस्थानोके प्रतिगामी नेतृत्व और दृष्टिकोणकी बदौलत हमे उनसे यह खतरा नहीं कि वे विस्तृत जनाधार ( mass basis ) वाली कांग्रेसकी प्रतिद्वन्द्वी संस्थाएँ वन नकेगी, किन्तु उनके द्वारा होनेवाले विरोधी प्रचारको रोकनेका प्रयत्न किया गया तो इसमे सन्देह नहीं कि वे हमारे राष्ट्रीय आन्दोलनको छिन्न-भिन्न करनेमे बहुत-कुछ अंगोमें सफल हो सकेंगी। प्रजातान्त्रिक तरीकोसे इन सस्थानोको काग्रेसके मुकावलेमे बटनेकी कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए उनकी पोरसे राष्ट्रीय आन्दोलनके वढते हुए प्रभावको रोकनेके लिए उतना जायज तरीकोका इस्तेमाल किया जायगा जो कि पश्चिमके फैमिस्टोद्वारा काममे लाया गया है। इन संस्थानोद्वारा प्रजातन्त्रके विरुद्ध प्रचार प्रारम्भ कर दिया गया है। हालमे मि० जिन्नाने वम्बईके एक भाषणमे यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रजातन्त्रमे उनका विश्वास नही है । हिन्दू-महासभाके पत्र भी लोकतन्त्र प्रणालीके विरुद्ध अधिकाधिक लिखने लगे है । काग्रेसके और देशमे फैली हुई प्रगतिशील विचारधारा- के खिलाफ मिथ्या और भ्रमपूर्ण प्रचार करके, संगठित गुण्डाशाहीके तरीकोका इस्तेमाल करके और माम्प्रदायिक वैमनस्यको फैलाकर इनके द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलनकी प्रगतिमे वाधाएँ डाली जायेंगी। सबसे बड़ा खतरा इन साम्प्रदायिक दंगोंका ही है। अगर साम्प्रदायिक दंगोने भीषण रूप धारण किया और विभिन्न सम्प्रदायोमे आपसी मनमुटाव जोर पकाता गया तो ऐसी हालतमे, जैसा कि महात्मा गांधीने वार-बार जोर दिया है, राष्ट्रीय आन्दोलनको सफलतापूर्वक चलाना बहुत कठिन हो जायगा । माम्प्रदायिक समस्याको हल करनेका पुराने समझौतेका तरीका वहुत अधूरा रहा है। इसके द्वारा केवल शिक्षित मध्यम श्रेणीकी समस्या हल होती थी; समातेकी बातचीतके जरिये उन्हे अपने तवकेके लिए एसेम्बलीमे सीटे और सरकारी नौकरियोमे हिता हासिल करनेमे मदद मिलती रही है। चूंकि इस समस्याके बने रहनेने इन तबकेका स्वार्य-साधन होता था, इसलिए वह इसे मिटानेका सच्चे दिलसे प्रयत्न न करता था। लेकिन आजकी अवस्थामे तो पुराना तरीका सिर्फ अधूरा नही, बस्ति एकादन वेकार पड़ गया है। अब साम्प्रदायिक मस्थानोकी मांग सिर्फ सरकारी नोनियो और हकूमतोमें हिस्सा पाना ही नहीं है; अाज उनकी मांग है कि जनताकी आणि यवन्थामें गुधार करनेकी दृष्टिसे स्थिरस्वार्थ वर्गवालोकी जो आर्थिक सुविधाएँ छीनी जा रही है, वे बन्द कर दी जायें, परन्तु इस मसलेपर कोई समझौता नही हो गता । पेमा करना जनताके साथ विश्वासघात करना होगा । आर्थिक प्रश्नोपर जनीदारों और पूंजीपतियांके माथ समझौता करके काग्रेस अपने क्रान्तिकारी स्वरूपको दीगो बनी। अगर काग्रेस जनताके आर्थिक प्रग्नोको हल करने और चुनावके वादोको पूरा कोनी पोर 'यान देगी तो देहातोगे सम्प्रदायवादियोकी दाल नही गल सकती।
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