आस्तीनके ये साँप ८५ आतंकवादियोको इटली और जर्मनीकी अोरसे शस्त्रास्त्रोकी मदद भी पर्याप्त मात्रामें दी गयी है । हिन्दुस्तानको फैसिस्ट राष्ट्रोने अपना विशेष कार्यक्षेत्र बनाया है। इनमेसे जापान और इटलीका प्रचार तो साधारण है, किन्तु जर्मनीका नाजी-प्रचार काफी वडे पैमानेपर हो रहा है । हिटलरके आर्य-जातिकी श्रेष्ठताके सिद्धान्तके नामपर हिन्दू युवकोको नाजी विचारधाराकी ओर आकर्षित किया जाता है। ऐसे हिन्दू महासभावादी युवकोपर इस प्रचारका काफी असर पड रहा है जो यह समझनेमे असमर्थ है कि फेसिज्म साम्राज्यवादका ही आगे वढा हुग्रा रूप है। जर्मनीका आर्य-जातिकी श्रेष्ठताका सिद्धान्त, स्वस्तिक चिह्न और ब्रिटेनका विरोध ऐसे युवकोके भ्रमको और भी पुष्ट करते हैं । मुसलमानोकी वीरताकी प्रशसा की जाती है और ब्रिटेनकी फिलिस्तीन और सीमान्त नीति लेकर उन्हें ब्रिटेनके खिलाफ उभाडा जाता है । मुसलमानोपर इस प्रचारका काफी असर पड़ा है। खाकसार पान्दोलन तो स्पष्टत नाजी तरीकोपर चलाया जा रहा है। ब्रिटिश सरकारकी अोरसे इस प्रचारको रोकनेकी कोशिश इसलिए नही की जाती कि वह समझती है कि समाजवादका जो प्रचार यहाँ हो रहा है उसके असरको दूर करनेके लिए फैसिस्ट प्रचार आवश्यक है। हमारे देशमे फैसिस्ट प्रचार इस प्रकार कुछ लोगोपर अपना असर कर रहा है इसमे आश्चर्यकी कोई बात नहीं । सच तो यह है कि पूंजीवादको ह्रासावस्थाके इस जमानेमे सारी दुनिया ही दो खेमोमे बँट गयी है । एक ओर वे प्रगतिशील लोग है जो मौजूदा पूंजीवादी सगाज-व्यवस्थाको हटाकर समाजवादी व्यवस्था कायम करना चाहते है, दूसरी पोर वे फैसिस्ट लोग है जो मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्थाको ही सैनिक शासनके वलपर रखना चाहते है । हमारा देश अभी भी पराधीन है, इसलिए हमारे यहाँ ये दो भाग स्पष्ट रूपसे दिखायी नही देते । परन्तु इसमे सन्देह नही कि साम्प्रदायिक संस्थाओके नये स्वरूपमें हमे फैसिस्ट आन्दोलनके प्रारम्भका दर्शन होता है । हमारे राष्ट्रीय आन्दोलनके लिए इस प्रकारकी प्रगति किस हदतक खतरनाक है और इस नये खतरेका किस तरह मुकावला किया जाय इसपर हम फिर विचार करेंगे। पहले हम कह आये है कि साम्प्रदायिक संस्थानोके स्वरूपमे काग्रेस पदग्रहणके बाद, बुनियादी तवदीली हुई है। अब वे अपने सम्प्रदायकी जनताके धार्मिक और सास्कृतिक अधिकारोकी रक्षाके लिए ही आन्दोलन नही करती; धार्मिक-सस्थानोके स्थानपर वे राजनीतिक सस्थाएँ बन रही है । काग्रेससे उनका विरोध केवल साम्प्रदायिक समस्यापर न होकर उसकी मौलिक विचारधारा और कार्य-प्रणालीसे है । हिन्दू-महासभा और मुसलिम लीगका पुराना प्रापसी झगडा खत्म हो चला है और उनका मुख्य उद्देश्य काग्रेसका विरोध हो गया है । इन सस्थाअोके द्वारा समाजके उन प्रतिगामी वर्गोके नेतृत्वमे एक सयुक्त मोर्चेका सगठन हो रहा है, जो काग्रेसके पदग्रहणके फलस्वरूप अपने राजनीतिक १. 'संघर्ष' १३ अगस्त १९३६
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