८० राष्ट्रीयता और समाजवाद संघर्ष चल रहा है । प्रतिक्रियागामी शक्तियाँ सारे संसारमे संगठित हो रही है । प्रगतिशील शक्तियाँ एक सूत्रमे अावद्ध होकर उनसे मोर्चा ले रही है। यह दृश्य हर जगह देखनेमें आता है । इसका कारण यह है कि पूंजी-प्रथा विकासको उस चरमसीमाको पहुँच गयी है जहाँ वह उत्पादनकी वृद्धिमे रुकावट डालती है। पूंजीप्रथाके आन्तरिक विरोधोको मिटाना पूँजी प्रथाकी सीमाके भीतर सम्भव नही है । पूंजीवादका वर्तमान रूप साम्राज्यवाद है। यह पूँजीवादकी अाखिरी मजिल है। समाजकी भावी उन्नतिके लिए इस प्रथाका लोप होना आवश्यक है । मानव-समाजको दारुण परिणामसे वचानेका यही एकमात्र उपाय है। पूंजीवाद आज अपनी समस्याग्रोको हल करनेमे अपनेको अयोग्य पाता है । पूंजीवादकी रक्षाके लिए अनेक प्रयोग किये जा रहे है, पर एकको भी सफलता नहीं मिल रही है । अर्थशास्त्रियोने यही समझ रखा है कि कृत्रिम उपायोसे वस्तुप्रोकी कीमत बढानेसे और उत्पादनका नियन्त्रण करनेसे पूंजी-प्रथाकी रक्षा हो सकती है। उनका ख्याल है कि पूंजी-प्रथाकी रक्षाके लिए यह भी आवश्यक है कि एक निश्चित योजनाके अनुसार राष्ट्रके आर्थिक-जीवनका संगठन किया जावे, किन्तु अभीतक सब प्रयोग निप्फल प्रमाणित हुए है। पूंजी-प्रथा आज अपनेको इस सकटकी अवस्थामे पाती है। उसे अपनी रक्षाका कोई मार्ग नही सूझ पडता । ससारका बाजार साम्राज्यवादी राष्ट्रोके लिए सकुचित होता जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अव्यवस्थित और अस्त-व्यस्त होते जाते है । राष्ट्रोकी प्रतिस्पर्धा फलस्वरूप भीपण होती जाती है और प्रत्येक राष्ट्र अपनी रक्षाके लिए अपनेको सुसज्जित कर रहा है । आपसमे होड-सी लग गयी है। इससे ससारकी आर्थिक पद्धति विनष्ट-सी हो रही जव पूंजी-प्रथाका इस प्रकार ह्रास और सगठन होने लगता है तब वह एक प्रतिक्रियाकी पद्धति होकर ही रह सकती है । यही प्रतिक्रिया 'फैसिज्म' कहलाती है । पूँजी-प्रथाको जीवित रखनेकी यह अन्तिम चेप्टा है। मजदूरोकी वर्ग-चेतना वढनेसे साम्राज्यवादका संकट और भी बढ जाता है। पूंजी-प्रथाके ह्रासके साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय जगत्मे वर्गोका परस्पर सघर्ष भी वढता जाता है । पूंजीपति पार्लमेण्टके द्वारा शासन करनेमे अपनेको असमर्थ पाते है, इसलिए वह अधिनायकत्वकी शरण लेते है, मजदूरोके सगठनको छिन्न-भिन्न कर देते है और शासनके वर्वर तरीकोसे काम लेते है । विचारोको नियत्रित करनेके लिए तरह-तरहके कानून बनाते है । विद्यार्थियो से ससारकी समस्यानोका पक्षपातरहित अध्ययन करनेकी स्वतन्त्रता भी छीन ली जाती है । प्रचारके सब साधनोपर शासनका अधिकार रहता है और प्रत्येक प्रश्नपर शासनका जो मत है वही जनताके सामने पेश हो सकता है । अपने देशमे भी विचारोपर कठोर नियन्त्रण हो रहा है। अपने प्रान्तके इण्टरमीडियेट कालेजके विद्यार्थी किसी प्रकारकी सभा या संस्थामे विना प्रिंसिपलकी आज्ञाके सम्मिलित नही हो सकते । इस सर्दूलरका अभिभावकोको विरोध करना चाहिये । फैसिस्टको वैदेशिक नीति भी शान्तिमय नहीं होती। वह युद्धकी नीतिका अवलम्बन
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