७८ राष्ट्रीयता और समाजवाद पदग्रहण करके विधानको रद कराना तो दूर रहा हम साम्राज्यवादके अनमान बन जायेंगे और देशकी मनोवृत्ति धीरे-धीरे वैध अान्दोलनके पक्षमे ढलने लगेगी। याशा हे हमारे प्रान्तके प्रतिनिधि फैजपुर काग्रेसके अधिवेशनमे देशको इस भावी खतरेसे बचानेका प्रयत्न करेंगे। चुनावके क्षेत्रमे कागेसका मुकाबला करनेके लिए गवर्नमेण्टने नेशनल एग्रीकल्चरल पार्टीको खडा किया है । मै ऊपर बता चुका हूँ कि किस तरह लार्ड हेलीकी कोशिगसे इस पार्टीका उस समय जन्म हुमा जव कि काग्रेस देशकी स्वाधीनताके लिए लड़ रही थी और काग्रेस कार्यकर्ता जेलोमें वन्द थे । मैदान खाली पाकर गवर्नमेण्टने बड़े-बड़े जमीदारों- को सगठित करनेका काम अपने हाथमे लिया । पार्टीके जो नियम प्रारम्भमे बने थे उनके अनुसार केवल बडे-बडे जमीदार ही दलके सदस्य हो सकते थे। नामने लोगोको यह धोखा हो सकता है कि यह किसानोंकी कोई पार्टी होगी, किन्तु ऐसा नहीं है। यह तो राजा और नवावोकी पार्टी है। छोटे जमीदारोको भी इसमें कोई स्थान नहीं है तो किसानोका क्या कहना । अव जब चुनाव करीव पाया तो गत जुलाईके महीनेमे पार्टीने अपने कुछ नियम वदल दिये । अव प्रत्येक व्यक्ति जो पार्टीके उद्देश्य स्वीकार करता है पार्टीका सदस्य हो सकता है । चुनावके कारण पार्टीने अपने प्रोग्राममे भी परिवर्तन किया है । चुनावके कारण अब पार्टीको इतना कहने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि वह नये विधानको अपर्याप्त और असन्तोपप्रद समझती है । जो कान्फरेस गर्मियोमे फर्नयावादमें हुई थी उसकी कार्यवाही देखनेसे मालूम होता है कि कान्फरेसने उतने महत्त्वके प्रश्नपर विचार ही नही किया था । अवध पार्टीके मन्त्रीने अपनी एक पुस्तिकामे नये विधानका समर्थन करते हुए यह लिखा है कि कोई भी विधान पूर्ण नही हो सकता, विधान तो विकासको चीज है, यह विधान भी बदलेगा और यह वात हमारे खपर बहुत कुछ निर्भर करेगी। देशमे ऐग्रिकल्चरिस्ट पार्टी ही ऐसा एक दल है जिसको नये विधानका विरोध करनेका अव भी साहस नहीं होता। बलिहारी है चुनावकी जो इस प्रतिक्रियागामी दलको भी एक हलका कदम आगे बढानेको विवश करता है । अब कमसे कम यह इतना तो कहने लगा है कि हम इस नये विधानसे सन्तुष्ट नहीं है । पार्टीके मैनिफेस्टोमे कहा गया है कि पार्टी मजदूरोकी अवस्थाको सुधारनेका यत्न करेगी। यदि समझना हो कि पार्टीका इससे क्या प्राशय है तो पार्टीके मन्त्रीका दह परचा देखिये जो उन्होने 'वोटरोको नेक सलाह' इस शीर्पकसे प्रकाशित किया है । मन्त्रीजी वताते है कि हमारी 'नौजवान पार्टी की ओर मजदूर और किसान खिचे पा रहे है । आगे पाप कहते है कि हमारी पार्टी “मजदूरोको मेहनतसे काम करनेका आदी वनावेगी।" मन्त्रीजीकी रायमे मजदूर प्राय: आलसी पीर कमजोर होते है, जव मन्त्रीजीकी ऐसी मनोवृत्ति है तो इस दलसे मजदूरोको क्या अागा हो सकती है ? ज्यादा अच्छा होता यदि पार्टी अपने मैनिफेस्टोमे इसकी घोषणा करती कि वह ऐसा कानून बनानेका प्रयत्न करेगी जिससे हरी, वेगारी और रसदकी प्रथा वन्द हो जायेगी और बड़े-बड़े जमीदार नाजायज
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