राष्ट्रीयता और समाजवाद तथा मुरादावाद आदि स्थानोमे लाख, लोहा, चूडी, जूता, कपडा, शक्कर और वर्तन बनानेके व्यवसायमे हजारो मजदूर काम करते है । इनको सगठित करनेकी जरूरत है। योग्य कार्यकर्तायोकी कमीसे मजदूर सगटनका काम वहुत आगे नही बढ रहा है । जो थोड़े बहुत कार्यकर्ता लगनसे मजदूरोंका संगठन करते भी है वह गवर्नमेटके दमन-चक्रके चंगुलमे फंस जाते है । हडतालके समय दफा १४४का प्रयोग किया जाता है और मजदूरोकी सभाएँ रोक दी जाती है । मजदूर कार्यकर्ताग्रोपर दफा १५३ और १२४ अ के मुकदमें चलाये जाते है । उनसे अकसर जमानते भी मांगी जाती है । मजदूरोकी वर्ग-चेतना वढ़ती जाती है । उनके आन्दोलनसे हुकूमत घवराती है और उसको दबानेके लिए मिल- मालिकोके सहयोगसे नाना प्रकारके उपायोसे काम लेती है । काग्रेसके कार्यकर्ताओंको मजदूर संगठनकी ओर अधिकाधिक ध्यान देना चाहिये और ट्रेड यूनियन काग्रेसके कार्यकर्तामोके साथ सहयोग करना चाहिये । इससे साम्राज्य- विरोधी मोरचा और भी दृढ होगा। सौभाग्यसे हमारे प्रान्तमें मजदूर कार्यकर्तामोसे काग्रेसवालोका अच्छा सम्बन्ध है । चुनावके कार्यमे भी हमारा उनका सहयोग है । यदि हम इस आवश्यक कार्यकी ओर ध्यान दे तो वहुत जल्द एक अच्छा मजदूर संगठन खड़ा किया जा सकता है । क्षेत्र विस्तृत है। केवल योग्य कार्यकर्तामोकी कमी है। तीन वर्ष हुए वस्ती-गोरखपुरमे ईख संघकी स्थापना हुई थी। इसमे प्रधान रूपसे कांग्रेस कार्यकर्ता काम करते थे । वास्तवमे यह किसानोका संगठन था। इधर इसका काम वहुत कुछ ढीला पड गया है । हमे ईख सघको फिरसे जगाना चाहिये । जहाँ-जहाँ शक्करकी मिले है वहाँ-वहाँ ईख सघ कायम करना चाहिये । साथ-साथ शक्करके कारखानों के मजदूरोको भी संगठित करना चाहिये । हमारे सामने यही मुख्य काम है । जनताको सगठित करके ही हम राष्ट्रीय आन्दोलन- को पुष्ट कर सकते है । हमारी दृष्टिमे चुनावका काम गीण है । फिर यह काम चन्द महीनोका ही है । फरवरीमे चुनाव समाप्त हो जायगा । हम अपनी लड़ाईको अधिक प्रभावशाली वनानेके लिए ही व्यवस्थापक सभाप्रोमें जा रहे है । हम उन सभाओंका उपयोग अपने प्रचार-कार्य के लिए करना चाहते है । हमारे आन्दोलनका यह एक और प्लैटफार्म होगा । चुनाव-सनामके समय जनताको राजनीतिक शिक्षा देनेका एक अच्छा मौका मिलता है । जनताको हमे नये अधिकारोका खोखलापन वतला देना है। हमें उनको वतलाना है कि नये विधानके द्वारा जनताकी कोई समस्या नही हल हो सकती। मौलिक समस्याएँ तो स्वतन्त्र होनेपर हल हो सकती है । ब्रिटिश साम्राज्यवादका भारत- पर पंजा मजबूत करनेके लिए नये विधानमे संरक्षण सम्बन्धी कई नियम है । साम्राज्यके स्वार्थ सुरक्षित रखनेके लिए और ब्रिटिश साम्राज्यवादके सामाजिक आधारको सुदृढ़ वनानेके लिए इस विधानका निर्माण हुआ है, किन्तु जनताके हितोकी सर्वथा उपेक्षा की गयी है । अधिकार-सम्पन्न वर्गोके स्वार्थ भी सुरक्षित रहेगे, क्योकि वह साम्राज्यवादके सहायक है । विधानमे इसकी विशेष रूपसे व्यवस्था कर दी गयी है कि ऐसे वर्गों के
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