अभिभापण ६६ मैं ऊपर कह चुका हूँ कि हमारा कार्य व्यापक है। इसलिए हम जीवनके किसी विभागकी भी उपेक्षा नहीं कर सकते । हमको प्रत्येक क्षेत्रमे कार्य करनेकी आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थानसे हमारे उद्देश्यकी पूर्तिमे थोड़ा वतृत सहायक अवश्य हो सकता है। अपने साहित्य की गतिविधिपर भी हमको सदा ध्यान रखना चाहिये। प्रगतिशील साहित्यके प्रस्तुत करनेमे हमको भी सहयोग करना चाहिये । नये समाजके गठनके कार्यमे साहित्यसे बड़ी सहायता मिल सकती है । साहित्यिकोकी ओरसे यह आवाज उठायी जाती है कि राजनीतिज्ञ साहित्यपर भी अपना नियन्त्रण कायम करना चाहते है । ससारके साहित्यिकोका सदासे यह कायदा रहा है कि वह राजनीतिज्ञोके हस्तक्षेपका विरोध करते आये है । वह राजनीतिको सदासे ही तिरस्कारकी दृष्टिसे देखते आये है और राजनीतिज्ञोसे वह सदा सशंक रहते है । यह बात अकारण नहीं है । किन्तु जो लोग सामाजिक जीवनको ही वदलना चाहते है वह कैसे साहित्यकी उपेक्षा कर सकते है ? साहित्यकी प्रत्येक कृति चाहे उसका स्वरूप और विषय कुछ भी क्यो न हो कुछ न कुछ राजनीतिक परिणाम अवश्य उत्पन्न करती है । यदि लेखक राजनीतिक परिस्थितिसे परिचित हो और बुद्धिपूर्वक लेखन-क्रियाको सम्पन्न करे तो उस क्रियाका परिणाम इच्छानुकूल हो सकता है। इससे हम अवश्य चाहेगे कि हमारे साहित्यिक वर्तमान राजनीतिका ज्ञान प्राप्त करे । यदि वह जीवनसे सम्पर्क रखना चाहते हैं और एक सफल कलाकार बनना चाहते है तो इस युगमे जब वर्ग-सघर्प प्रबल वेगसे चल रहा है वह कैसे अपनेको इससे अलग कर सकते है । जीवनकी कथा ही यह है । इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। किन्तु हमारा अभिप्राय यह नही है कि हम साहित्यको किसी खास साँचेमे ढाले या उसका किसी प्रकार नियन्त्रण करे । हम यह भी नहीं चाहते कि उनकी कृतियोंका विषय शुद्ध राजनीतिक हो । स्टालिनके शब्दोमे हम एक अच्छे कलाकारको उसके क्षेत्रसे हटाकर एक रद्दी किस्मका हडताल करानेवाला मजदूर नेता नही बनाना चाहते । वह कलाके द्वारा जितनी अच्छी सेवा कर सकता है उतनी राजनीतिके क्षेत्रमे प्रवेश करके नही कर सकता । प्रान्तके साहित्यिकोसे मेरा नम्र निवेदन है कि वह जनताके लिए साहित्य प्रस्तुत करें। इस कार्यको सम्पन्न करनेके लिए सरल भाषाका प्रयोग करना आवश्यक होगा। चूंकि हमारे प्रान्तकी भाषाको राष्ट्रकी भाषा वननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इसलिए हमारे साहित्यका सारे देशपर प्रभाव पड़ना अनिवार्य है। मैं आपसे निवेदन कर चुका हूँ कि जनताको आर्थिक कार्यक्रमके आधारपर संगठित करना हमारा मुख्य कार्य होना चाहिये । पहले हम प्रान्तके किसानोकी अवस्थापर विचार करेगे और इस बातके वतानेका प्रयत्न करेगे कि अवतक किसानोने अपने कष्टोको दूर करनेके लिए क्या किया है। अपने प्रान्तकी जनसंख्या लगभग ५ करोड़के है । गत ३० वर्पोमे यद्यपि हमारी जनसख्यामे अधिक वृद्धि नही हुई है, तथापि भूमिका वोझ निरन्तर बढ़ता ही जाता है । पिछले ३० वर्पोमें खेतीपर आश्रित रहनेवाली जनसंख्यामे ४० लाखकी वृद्धि हुई है।
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