४२ राष्ट्रीयता और समाजवाद हुई थी। इसलिए बहुतसे काग्रेसके सदस्योने इसपर यह प्राक्षेप किया कि यह स्वतन्त्रताके ध्येयके प्रतिकूल है । इस कारण काग्रेसमे वाद-विवाद उत्पन्न हो गया । जो लोग काग्रेमके ध्येयको नीचा नहीं करना चाहते थे उन्होने स्वाधीनता संघ कायम किया। इस संघके केवल वे ही सदस्य हो सकते थे जो काग्रेसके भी सदस्य थे। पूर्ण रवतन्त्रताके उद्देश्यके साथ-साथ सामाजिक तथा आर्थिक समताके अाधारपर भारतीय समाजका पुननिर्माण करना संघका उद्देश्य था । कलकत्ता-काग्रेस (१९२८) के अवसरपर जब रार्वदल कमेटीको रिपोर्ट स्वीकृतिके लिए पेश हुई तो वहुत वादविवाद हुया, पर अन्तमें रिपोर्ट मंजूर की गयी और काग्रेसने अपना यह निश्चय प्रकट किया कि यदि ब्रिटिश पार्लमेण्ट इस शासन- विधानको ज्योकी त्यो ३१ दिसम्बर १९२६ तक मजूर कर लेगी तो काग्रेस इसे स्वीकार करेगी अन्यथा काग्रेस अहिंसात्मक असहयोग प्रारम्भ कर देगी और देशको सलाह देगी कि वह टैक्स न अदा करे । १९२८ की सबसे अधिक महत्त्वकी घटना बारडोली सत्याग्रह थी। वारदोली ताल्लुकेके किसानोका कहना था कि मालगुजारीकी तशखीस गलत है और उन्होंने फिरसे जाँच करनेकी सरकारसे प्रार्थना की। जब सरकारने इस साधारण प्रार्थनापर भी ध्यान न दिया तो किसानोने श्री वल्लभभाई पटेलके नेतृत्वमे सत्याग्रह प्रारम्भ किया और मालगुजारी देना बन्द कर दिया । लोगोकी जमीने और मवेशी पानीके मोल नीलाम कर दिये गये और उनपर नाना प्रकारके अत्याचार किये गये, पर सत्याग्रही अपनी प्रतिज्ञापर अटल रहे । उनके अद्भुत सगठन, असीम धैर्य और त्यागको देखकर लोग चकित हो गये । अन्तमे सरकारको झुकना पडा और किसानोकी मांग स्वीकार करनी पड़ी। सत्याग्रहकी इस रण-पद्धतिमे लोगोका विश्वास वढने लगा और भारतका स्थान ससारकी दृष्टिमे वहुत ऊँचा हो गया । नवयुवकोमे भी इस वर्ष विशेष रूपसे जागृति हुई। युवक-सघ स्थापित किये गये । नवयुवकोने वहिप्कारके प्रदर्शनोमे अच्छा भाग लिया। वम्बई और बङ्गालमे युवकोंका अच्छा संगठन हो गया। इस वर्ष मजदूरोमे भी वहुत हलचल रही । कई हड़ताले हुई। बम्बईके मजदूरोकी हडताल विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । यह छ' महीनेतक चलती रही । मजदूरोने अपने संगठन और दृढताका अच्छा सबूत दिया । सन् १९२६मे भी मजदूरोकी हडताले जारी रही। बङ्गालमे जूटमिलके लगभग ढाई लाख मजदूरोने हड़ताल की, पर अच्छा सगठन न होनेके कारण इनको सफलता न मिली। बम्बईके मजदूरोमे वर्गवादके सिद्धान्तका प्रचार हो रहा था। उनकी मनोवृत्ति वदलने लगी और एक वर्गमे मजदूरोकी हुकूमत कायम करनेकी प्रवृत्ति पैदा हो गयी । २० मार्च सन् १९२९को वङ्गाल, बम्बई, पञ्जाव और संयुक्तप्रान्तके अनेक कार्य-कर्ता गिरपतार कर लिये गये और उनपर १२१-अ धाराके अनुसार पडयन्त्रका अभियोग लगाया गया । यह मेरठ-षडयन्त्रका मुकदमा अभीतक समाप्त नही हुआ है । सन् १९२६मे लाहौर षडयन्त्रका मामला भी चला। राजनीतिक कैदियोके साथ बुरा व्यवहार होनेके कारण कुछ अभियुक्तोने भूख-हड़ताल की। श्री जतीन्द्रनाथ दासकी इसीमे मृत्यु हुई । इसका
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