गाधीजी ४७७ 1 उन सबको प्रेरणा देगा जो चाहते है कि ससार समझदारी और सद्बुद्धिके रास्तेपर लौट आये । उनका ध्यान बहुत-कुछ अपने ही देशके प्रश्नोमे लगा हुआ था, इससे कुछ लोग उन्हे सकुचित हृदयका एक राष्ट्रवादीमात्र समझ बैठनेकी गलती करते है । परन्तु गाधीजी- को ऐसा समझना केवल अज्ञानमूलक है । गाधीजी यह जानते थे कि जगत् मूलत एक है और इसलिए अहिंसा यदि किसी एक ही देशमे सीमित रही तो वह सफल नही हो सकती। पर वे अपनी मर्यादा देखते थे और यह जानते थे कि मेरा कर्मक्षेत्र मूलत भारतवर्ष ही है । उनका शान्ति और सद्भावनाका सन्देश सबके लिए था, किसी विशिष्ट वर्ग या दलके लिए नही । लोकतन्त्र, सामाजिक न्याय और सार्वराष्ट्रीयताके वे अनन्य साधक थे सव द्रष्टायोके समान उन्होने भी अपने विचारोको कोई दार्शनिक रूप नही दिया और मार्क्स के समान भी अपनी शिक्षाप्रोका 'गाधीवाद' नाम सुननेपर उसका निपेध किया करते थे। हठधर्मी नही थे, किसी भी नये विचारको परखनेके लिए वे सदा तैयार रहते थे। गांधीवाद कोई निगूढ दर्शन नही, वल्कि आचार-विचारकी एक पद्धति है। उसमे कोई पारभौतिकता नही है । उसके सदाचार-सम्बन्धी कुछ नियम है जो व्यक्ति और संस्था दोनोके लिए है । उसकी कार्य-पद्धति अहिंसाकी है, पर यह अहिसा किसी तरह मेल करके चुप और शान्त हो जानेकी वृत्ति नही है । वुराईके साथ इसका मेल नहीं होता, उसके साथ इसका असहयोग ही रहता है । इसके द्वारा उसका प्रत्यक्ष प्रतिकार होता है, पर अहिंसात्मक उपायोसे । सव मानव-समस्याग्रोको इस प्रकार हल करनेका इसका दावा है और यह विश्वास है कि अन्तमे इसीकी विजय होगी । कारण, मनुष्यकी अन्तस्थ सवृत्ति और विश्वमे नैतिक अधिकारका परम प्रभुत्व होनेका इसे भरोसा है। अहिंसा- व्रतके अपने अनुसन्धानसे इसे यह तथ्य मिला है कि वर्गभेदो और सामाजिक तथा आर्थिक विपमताप्रोको मिटाये विना समाजमेसे हिंसाका उन्मूलन नही हो सकता । अत वर्गहीन समाज इसका ध्येय है और समत्वयुक्त समाजकी एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था इसे करनी है जिससे जनतन्त्रताका भाव नष्ट न हो और मनुष्यकी सर्वश्रेष्ठता स्थापित हो । विज्ञानसे इसे इसी हदतक मदद लेना है कि उसके द्वारा मानवताको चोट पहुँचाये विना उपकारी कार्योंमे जो कुछ सहायता मिल सकती है वह प्राप्त की जाय । पर गाधीवाद वैज्ञानिक मनोवृत्ति नहीं है, जीवनके प्रति इसकी नैतिक मनोवृत्ति है । साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय द्वेप और लोभके इस जमानेमे गाधीके सन्देशका विशिष्ट महत्व है । वर्गो-वर्गों और राष्ट्रो-राष्ट्रोके पारस्परिक सघर्षोसे ससार छिन्न-भिन्न हो रहा है । सर्वत्र लोग शान्तिके लिए तरस रहे है, पर वे मूक है या उनके मुँह बन्द किये गये है । गाधीने शान्तिका मार्ग दिखा दिया है। सार्वराष्ट्रीय सहानुभूति और सहयोगके लिए सचेष्ट सद्भावसम्पन्न लोगोका यह काम है कि गाधीके प्रादर्शोको ग्रहण करे और जगत्की दुष्प्रवृत्तियोके विरुद्ध संघर्ष करनेकी उनकी पद्धतिका अनुसरण करे ।' १. 'दि मार्च आफ इडिया' मार्च-अप्रैल, सन् १९४६ ई०
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