४७० राष्ट्रीयता और समाजवाद खडे हो, स्वयं अपने दीपक हो, किसी दूसरे दीपकका सहारा मत लो? हमारे महानिर्वाणके अनन्तर हमारे निर्वाणकी शिक्षा ही तुम्हारे लिए दीपकका काम करेगी। जानो, रोग्रो मत, यह रोनेका समय नही है । निर्वाणके लिए सदा प्रयत्नशील होते रहो।" यदि हमारा राष्ट्रपिता, ससारका महापुरुप अपनी मृत्युशय्यापर पड़ा हुया कुछ वात कर सकता तो मुझे पूरा विश्वास है कि उसका भी उपदेश इन्ही सारगर्भित शब्दोमे होता । यद्यपि उस समय वह हमको कुछ उपदेश अपनी अन्तिम घड़ियोमें न दे सके, किन्तु हम जानते है कि अपने जीवनमे उन्होने बार-बार यह कहा कि तुम हमारा सहारा मत ढूंढो । इसीलिए सन् ३५ मे उन्होने काग्रेसकी सदस्यता छोड़ी और इस बातके समझनेके लिए कि बड़े-से-बडा महापुरुष क्यो न हो, आखिर उसके जीवनकी अवधि भी निश्चत है । यदि तुम इसी प्रकारसे उसके ऊपर आश्रित होगे तो उसके उठ जानेके अनन्तर तुम अवश्य खिन्न होगे, और अवसादसे भर जानोगे । इसी प्रकार समय-समयपर हमको अपने पैरोपर खड़े होनेका उपदेश देकर महात्माजीने हमको यह बताया कि तुम अपने पैरोंपर खडा होना सीखो ! भगवान् वुद्धके वह शब्द अाज हमारे कानोमे गूंज रहे है । यह दुखका समय है । ज्यो-ज्यो दिन बीतते जायेगे हम महात्माजीके अभावको अधिकाधिक अनुभव करते जायँगे । किन्तु यदि हम उनके सच्चे अनुयायी है, यदि हम उनके उपदेशो और आदेशोपर दृढ रहना चाहते है, तो हमारा कर्तव्य है कि वीर पुरुषोकी तरह उनकी शिक्षाको शिरोधार्य करे । हम स्वयं अपने पैरोपर खडे हो । प्रात्मदीपक बने । भारतवर्षका प्रत्येक व्यक्ति, जो गाधीजीका अनुयायी कहलाता है, उसका आज यह परम पुनीत कर्तव्य है कि अपने हृदयमे उस ज्योतिको जगाकर दूसरोका मार्ग-प्रदर्शन करे । आज वह हाड़-मासकी कैदसे मुक्त होकर और भी विशाल रूपसे, और भी प्रभावशाली प्रकारसे हमारे हृदयोपर राज्य करेंगे। उनकी शिक्षाके प्रसारमे कठिनाई होनेके स्थानमे अव सुगमता होगी और आज जव वह राजनीतिके क्षेत्रसे उठे तो भारत ही नहीं सारा संसार उनकी शान्तिप्रेमकी शिक्षाको अपनानेके लिए तैयार होगा। इसके लिए आज मैं यही कहना चाहता हूँ कि हम भारतीय, जो कि अभागे है, जिनको कि इस आजादीके साथ जिन्दगीका पैगाम मिलनेकी जगह मौतका पैगाम मिला, यदि हम अब भी संभलना चाहते है तो हमे चाहिये कि वह मशाल जिसको गांधीजीने हमारे हाथोको सौपा, वह पुरानी भारतवर्पकी मशाल जो पुरानी भी है और आजके लिए नयी भी, उस मशालको अपने मजबूत हाथोसे पकडे और इस वातकी चेष्टा करे कि हमारे हाथमेसे इस मशालको कोई छीन न ले । जबतक हम उस मशालके नम्वरदार है, तबतक भारतवर्षका वाल कोई बॉका नही कर सकता । जो अाज यह दावा करते है कि गाधीजी भारतीय संस्कृति और हिन्दू-धर्मके विनाशक है और विरोधी है, उन्होने भारतीय सस्कृति और धर्मके मर्म और हृदयको नही पहचाना । भारतीय इतिहास पुकारकर कहता है कि ससारमे एकता होनी चाहिये । सर्वत्र एक ही भाव, एक ही आत्माका सचरण होता है । सारा ससार एक सूत्रमे बँधा हुआ है। मानव-जातिसे प्रेम करो । अत्याचार, अनाचारसे घृणा कगे। जीवनका मार्ग शान्तिमे है, प्रेममे है, धर्ममे है, जीवन के सामाजिक और आध्यात्मिक
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