असली और नकली समाजवाद ४६७ भूमिका स्वत्व व्यक्तियोके हाथमे न होकर सारे समाजके हाथमे हो । इन लोगोका विचार था कि ऐसा करनेसे हम समाजवादकी प्रतिष्ठा भी कर सकेंगे और मशीन-युगके दोपोसे भी मुक्त रह सकेगे । रूसके वैज्ञानिक समाजवादियोंको इनका घोर विरोध करना पड़ा था और वे इसके मुकावलेमे तभी सफल हो सके थे, जव वारम्वार विफल होनेके कारण लोगोको इनकी नीतिपरसे विश्वास उठ गया था । रूसके इतिहाससे यह भी पता चलता है कि रूसी-त्रान्तिके समय Narodnik ने समाजवादियोका विरोध किया था और क्रान्तिके दबानेमे श्रम-जीवियोके विरुद्ध पूंजीपतियोकी सहायता की थी। अपने देशमे अभी कोई ऐसा दल पैदा नहीं हुआ है, पर जो लोग अतीतकालमे स्वर्णयुग- की तलाश करते है, वह इन्ही ग्राम-सस्थाअोका आश्रय लेकर इसी प्रकारके समाजवादकी कल्पना कर सकते है। यह एक आश्चर्यकी बात है कि अपने देशमे जो लोग मशीन-युगके विरोधी है और जिनकी आँख भविष्यपर न होकर अतीतपर है, वह Narodnik की तरह कौसिलोमे न जानेके भी सिद्धान्ततः विरोधी है । दोनोमे विचार साम्य होनेसे कार्यमे भी समानता पायी जाती है और इसी विचारके लोगोमेसे Narodniks के भाई भी निकल सकते है । अपने देशमे एक और वर्ग है, जो समाजकी वर्तमान अवस्थाको कायम रखना चाहता है, पर देखता है कि उस व्यवस्थासे जो दोष उत्पन्न हुए है यदि वह दूर नही किये जायेगे तो वर्तमान समाजका नाश हो जायगा । इसलिए यह वर्ग वर्तमान व्यवस्थामे विना किसी प्रकारका मौलिक परिवर्तन किये उसके दोपोको दूर करनेकी चेष्टा करता है । अधिकतर लोग इसी वर्गके है । यह वास्तवमे समाजसुधारक है । इन्हे समाजवादी न कहना चाहिये, पर यह लोग भी अपनेको समाजवादी कहनेकी हिम्मत दिखाते है । ये नाना प्रकारके सुधारकी योजनाएँ उपस्थित करते है और वर्तमान समाजके सकटको टालनेका प्रयत्न करते है। इस वर्गमे ऐसे बहुतसे लोग शामिल है, जो सद्भावसे प्रेरित होकर गरीवीको दूर करते है । हम उनके त्यागका आदर करते है, पर इसका यह अर्थ नही है कि जिस नीतिका वह अनुसरण करते है उसका हम भी समर्थन करे । सुधारकी इस नीतिसे समाजवादीका अभीष्ट सिद्ध नही हो सकता । इस नीतिका वरावर विरोध करना चाहिये; क्योकि खुले विरोधियोकी अपेक्षा इस नीतिके समर्थकोसे वैज्ञानिक समाजवादको अधिक नुकसान पहुँचता है। एक और भी वर्ग हो सकता है जो समाजवादियोकी उन माँगोमेसे कुछ मांगोंको स्वीकार कर ले, जो परिवर्तनको अवस्थाको दृष्टिमे रखकर तैयार की गयी है और इसी नाते समाजवादी होनेका दावा पेश करे । इन मांगोमे कई ऐसी मांगे है, जो व्यक्तिगत सम्पत्तिका अन्त तो नही करती, किन्तु उनको मर्यादित अवश्य कर देती है। बड़े-बडे टैक्स तथा वारिसोपर टैक्स ऐसे उपाय है जिनसे व्यक्तियोकी सम्पत्तिका नियन्त्रण हो सकता है ; पर इससे गरीवीका अन्त निश्चय नही होता । इस वर्गकी भूल यही है कि कि यह समझता है कि ये सव उपाय गरीवी तथा समाजकी अन्य प्रचिलत बुराइयोको दूर करनेके लिए पर्याप्त है । इसके प्रतिकूल एक समाजवादी ऐसी माँगोका समर्थन केवल
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