भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास विरोध नही कर सकते थे। उनका आक्षेप केवल यह था कि जिस प्रकारसे और जिस रूपमे शुद्धि-आन्दोलन चलाया जाता है वह अनुचित है । इसमे सन्देह नही कि एक बहुत बड़ी सख्यामे मल्कानोको हिन्दू बनते देखकर मुसलमानोंका उत्तेजित हो जाना एक स्वाभाविक वात थी, लेकिन इस उत्तेजनाका एक विशेष कारण भी था। इस्लाम-धर्मके अनुसार धर्म-परिवर्तन एक बहुत बडा अपराध समझा जाता है और इस अपराधके लिए मृत्यु दण्डका विधान किया गया है । साराश यह है कि विविध कारणोसे हिन्दू-मुसलमानोका वैमनस्य बढता ही गया । १९२४मे कोहाट और गुलवर्गाके भीषण दगे हुए। दोनो जातियोंके पापका प्रायश्चित करनेके लिए महात्माजीने २१ दिनका उपवास किया और दिल्लीमे एकता सम्मेलन किया गया, पर इसका कुछ भी फल न हुआ । काग्रेसका प्रभाव दिन-ब-दिन घटता ही गया । इसलिए जब महात्माजी बीमारीके कारण जेलसे छोड दिये गये तव उन्होने काग्रेसके दोनो दलोमे एकता स्थापित करना सबसे आवश्यक काम समझा । इसीलिए उन्होने २२ मई १९२४को देशबन्धु और पं० मोतीलाल नेहरूके साथ एक समझौता किया, जिसके अनुसार काग्रेसकी अोरसे कौसिल-कार्य करनेका अधिकार स्वराज्य-पार्टीको दिया गया। इस समझौतेके करनेका एक और भी कारण था। उस समय वगालमें सरकारकी ओरसे जोरोसे दमन हो रहा था। आर्डिनेसहारा स्वराज्य-दलके सदस्य नजरवन्द कर लिये गये थे। यद्यपि सरकारका कहना था कि विप्लवको दबानेके लिए ही यह भाडिनेस पास किया गया है, तथापि जनताकी यह धारणा थी कि बङ्गालकी स्वराज्य-पार्टीके विरुद्ध ही इस अस्त्रका प्रयोग किया जा रहा है । इसमे सन्देह नही कि असहयोग आन्दोलनके स्थगित हो जानेके कारण हिंसावादियोने अपना सगठन फिरसे शुरू कर दिया था, तथापि आर्डिनेसका प्रयोग केवल हिंसावादियोके विरुद्ध ही नहीं किया गया, बल्कि स्वराज्यदलके कई मान्य सदस्य भी नजरबन्द कर लिये गये। वगालमे स्वराज्यदलकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। कलकत्ता कारपोरेशन उनके अधिकारमे था और बगाल-कौसिलमे अन्य दलोका सहयोग पाकर उन्होने एक प्रबल विरोधी दल खडा कर दिया था। महात्माजी इस दमनका विरोध करनेके लिए भी काग्रेसके दोनो दलोंको आपसमे मिलाना चाहते थे। वह देशके विविध राजनीतिक दलोकोभी काग्रेसमे सम्मिलित करनेकी चंष्टामे लगे थे। इसी विचारसे उन्होने इस समझौतेमे विदेशी वस्त्रक वहिप्कारको छोडकर असहयोगके अन्य कार्य-क्रमको स्थगित करनेकी काग्रेससे सिफारिश की । वेलगांव काग्रेसने इस समझौतेको मजूर किया। इस समझौतेके वाद ही स्वराज्य- दलने अपनी नीति और कार्यक्रममे परिवर्तन किया। निरन्तर अविश्रान्त प्रतिवन्धनकी नीतिके स्थानमे पार्टीने यह निश्चय किया कि वह ऐसे रूपमे प्रतिबन्धकी नीतिसे काम लेगी जिसको वह समय-समयपर निश्चित करती रहेगी। राष्ट्रके उद्योग-व्यवसायकी उन्नतिके लिए, सरकारकी अर्थ शोषणकी नीतिका विरोध करनेके लिए तथा मजदूरोके अधिकारोकी रक्षाके लिए प्रस्ताव या विल पेश करना तथा अन्य आवश्यक कार्य करना स्वराज्य पार्टीके कार्य-क्रमका एक प्रधान अंग हो गया । इस कार्यक्रमके अनुसार जव व्यवस्थापक सभामे सरकारकी अोरसे फौलादके व्यवसायको सरक्षण देनेके लिए एक
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