४५२ राष्ट्रीयता और समाजवाद तृप्ति करनेके लिए समाचारपत्रोकी संख्या भी बढेगी । अनिवार्य शिक्षाके फलस्वरूप जनतामे समाचार जाननेकी उत्सुकता तो बढेगी, किन्तु अपने स्वल्प ज्ञानके कारण वह उन समाचारोके महत्त्वको प्रॉक न सकेगी। उस समय विचारकों और राजनीतिज्ञोके पत्रोके ग्राहक अपेक्षाकृत कम होगे । व्यापारियोको अच्छा मौका मिलेगा और व्यापारियोके पत्र अधिकाधिक प्रकाशित होने लगेगे, जिनका एकमात्र ध्येय जनताको अपनी ओर आकृष्ट करना होगा । जनताको राजनीतिमे केवल समाचारसे ही रुचि होती है। उनकी विशेष अभिरुचि युद्धके समाचार, पुरुष स्त्रीके सम्बन्धके किस्से, खेलकूद तथा अपराधके समाचारोमे होती है । इसलिए ऐसे पत्रोमें समाचार काफी रहते है । सस्ती कहानी और कविता भी लोकप्रिय होती है । अतः जनताको सुरुचिपूर्ण साहित्य देना तथा सार्वजनिक प्रश्नोपर मत निश्चित करनेमे उनकी सहायता करना इन पत्रोका लक्ष्य नही होगा। हमारे देशमें ऐसा समय शीघ्र पानेवाला है। इगलैण्डका उदाहरण हमारे सामने है । वहाँ सन् १८८० मे पहला कानून पास हुआ था, जिसके द्वारा शिक्षा सर्वसाधारणके लिए अनिवार्य की गयी थी। इस कानूनके प्रयोगमें आनेसे कुछ वर्षोके अनन्तर समाचारपत्र पढनेवालोकी सख्यामे वृद्धि हुई और लार्ड नार्थक्लिफने इस नये वर्गकी मनोवृत्तिका अध्ययन कर उसकी अभिरुचिके अनुकूल पन्न निकाला । उन्ही के अनुसार उनका उद्देश्य शुद्ध व्यापारी था। अपने मालिकोको (वोटरो- को) शिक्षित करनेके लिए सन् १८७० का कानून पास हुआ था, किन्तु शासकवर्ग इतना ही चाहता था कि मतदाता लिखपढ सके और कुशल मजदूर वन सके । अपना 'मालिक' बनाना तो उनके विचारोसे बहुत दूर था। वह कहते थे कि मतदाता हमारे मालिक है, जिस प्रकार हम किसानको अन्नदाता कहते है । नार्थक्लिफके विचारके पत्र-मालिक अपने बचावमें कहते है कि सर्वसाधारण जो चाहते है वही हम उनको देते है । हम सर्वसाधारणके लिए राजनीतिक शिक्षाकी व्यवस्था करनेके लिए नही है । इन पत्र -मालिकोका गठवन्धन विज्ञापन देनेवाली फर्मोंसे हुआ और आपसके सहयोगसे दोनो फलने-फूलने लगे। इस परिवर्तनसे पत्न-जगत्मे बडी हलचल मची। 'टाइम्स' और 'मैन्चेस्टर गाजियन' अपना स्वरूप बदलनेके लिए विवश हुए, किन्तु उन्होने अपने मूल ध्येयका परित्याग नही किया । अनेक पत्न बन्द हो गये या नये पत्र व्यापारियोद्वारा खरीद लिये गये । पुराने स्वतन्त्र विचारके सम्पादक धीरे-धीरे लुप्त होने लगे, पनोपर व्यवस्थापकोका अधिकार हो गया । आज सम्पादककी अपेक्षा व्यवस्थापकका स्थान ऊँचा है, उसीका अधिक मान और उसीका अधिक पुरस्कार है। कुछ पत्रोको जीवित रहनेके लिए अपने ढगको बदलना पड़ा । उनको आदर्श और व्यापारके वीच समझौता करना पडा । आज उन्ही पत्नोकी अधिक विक्री है जिनमे अपराध, स्त्री-पुरुपका सम्बन्ध और खेलके समाचार अधिक रहते है । यद्यपि ये पत्र शुद्ध व्यापारकी दृप्टिसे चलाये जाते है तथापि इनकी सहानुभूति पूँजीपतियोके साथ होती है। अपने मालिकोके विशेप राजनीतिक विचारोको भी यह परिलक्षित करते है। धीरे-धीरे इनमे शक्तिके लिए प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है और यह राजनीतिक
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।