मेरे संस्मरण ४४१ देदी । एक दिन शामको वह याये और सीधे मेरे मित्रके कमरे मे गये। मेरे मित्र कालेजसे निकाल दिये गये । किन्तु श्रीमती एनी वेसेण्टंने उनको हिन्दू कालेजमें भरती कर लिया । धीरे-धीरे हममेसे कुछका क्रान्तिकारियोसे सम्बन्ध होने लगा। उस समय कुछ कान्तिकारियोका विचार था कि I C. S. मे शामिल होना चाहिये, ताकि क्रान्तिके समय हम जिलेका शासन संभाल सके । इस विचारसे मेरे ४ साथी इगलैण्ड गये। मैं भी सन् १९११ मे जाना चाहता था, किन्तु माताजीकी आज्ञा न मिलनेके कारण न जा सका। इधर सन् १९०७ मे सूरतमे फूट पड चुकी थी और काग्रेससे गरम दलके लोग निकल आये थे। कन्वेशन बुलाकर काग्रेसका विधान वदला गया । इसे गरम दलके लोग कन्वेशन काग्रेस कहते थे । गवर्नमेण्टने इस फूटसे लाभ उठाकर गरम दलको छिन्न-भिन्न कर दिया । कई नेता जेलमे डाल दिये गये । कुछ समयको प्रतिकूल देख भारतसे वाहर चले गये और लन्दन, पेरिस, जिनेवा और वलिनमे क्रान्तिके केन्द्र वनाने लगे। वहाँसे ही साहित्य प्रकाशित होता था। मेरे जो साथी विलायत पढने गये थे, वह इस साहित्यको मेरे पास भेजा करते थे। श्री सावरकर की War of Indian Independence' की एक प्रति भी मेरे पास आयी थी और मुझे बरावर हरदयालका 'वन्दे मातरम्', वलिनका 'तलवार' और पेरिसका 'Indian Sociologist' मिता करता था। मेरे दोस्तोमे से एक सन् १९१४ की लडाईमे जेलमे वन्द कर दिये गये थे तथा अन्य दोस्त केवल वैरिस्टर होकर लौट आये । मैंने सन् १९०८ के वादसे काग्रेसके अधिवेशनोमे जाना छोड़ दिया, क्योकि हम- गरम दलके साथ थे । यहाँतक कि जब काग्रेसका अधिवेशन प्रयागमे हुना, तव भी हम उसमे नही गये । सन् १९१६ मे जव कामेरामे दोनो दलोमे मेल हुआ तव हम फिर काग्रेसमे आ गये। वी० ए० पास करनेके बाद मेरे सामने यह प्रश्न आया कि मैं क्या करूँ । कानून पढ़ना नहीं चाहता था । मै प्राचीन इतिहासमे गवेषणा करना चाहता था । न्योर कालेजमे भी अच्छे-अच्छे अध्यापकोके सम्पर्कमे आया । डाक्टर गंगानाथ झाकी मुझपर बड़ी कृपा थी। वी० ए० मे प्रोफेसर ब्राउनरो इतिहास पढा । भारतके मध्ययुगका इतिहास वह बहुत अच्छा जानते थे । पढाते भी अच्छा थे। उन्हीके कारण मैने इतिहासका विपय लिया । बी० ए० पास कर मै पुरातत्व पढने काशी चला गया। वहाँ डाक्टर वेनिस और नारमन ऐसे सुयोग्य अध्यापक मिले । क्वीस कालेजमे जो अंग्रेज अध्यापक आते थे, वह संस्कृत सीखनेका प्रयत्न करते थे। जाटर वेनिस-ऐसा पढानेवाला कम होगा । नारमन साहबके प्रति भी मेरी वडी श्रद्धा थी। जव मै क्वीस कालेजमे था, तव वहाँ श्री शचीन्द्रनाथ सान्यालरो परिचय हुआ । विदेशसे पानेवाला साहित्य वह मुझसे ले जाया करते थे । उनके द्वारा मुझे क्रान्तिकारियोके समाचार मिलते रहते थे । मेरी इन लोगोके साथ बडी सहानुभूति थी। किन्तु मै डकैती आदिके सदा विरुद्ध था; मै किसी भी क्रान्तिकारी दलका सदस्य न था । किन्तु उनके कई नेताअोसे परिचय था । वे मुझ पर विश्वास करते थे और समय-समयपर मेरी सहायता भी लेते रहते थे। सन् १९१३ मे जव मैंने एम० ए० पास किया, तव मेरे घरवालोने वकालत पढनेका आग्रह किया । मैं इस पेशेको पसन्द नही
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