मेरे संस्मरण ४३६ और राष्ट्रीय शिक्षा थे । काग्रेसका लक्ष्य बदलनेकी भी बातचीत थी। दादाभाई नौरोजीने अपने भापणमें 'स्वराज' शब्दका प्रयोग किया और इस शब्दको लेकर दोनो दलोमे विवाद खड़ा हो गया । यद्यपि पुराने नेता बहिष्कारके विरुद्ध थे, उनका कहना था कि इससे विद्वेप और घृणाका भाव फैलता है, तथापि वङ्गालके लिए उनको भी इसे स्वीकार करना पड़ा। जापानकी विजयसे एशियामे नव-जागृतिका आरम्भ हुआ । एशियावासियोने अपने खोये हुए आत्मविश्वासको फिरसे पाया और अंग्रेजोंकी ईमानदारीपर जो वालोचित विश्वास था, वह उठने लगा। इस पीढीका अंग्रेजी शिक्षित-वर्ग समझता था कि अग्नेज हमारे कल्याणके लिए भारत आया है और जब हमको शासनके कार्यमे दक्ष बना देगा, तव वह स्वेच्छासे राज्य सौपकर चला जायगा। विना इस विश्वासको दूर किये राजनीतिमें प्रगति आ नही सकती थी । लोकमान्यने यही काम किया । इस नये दलकी स्थापनाकी घोपणा कलकत्तेमे की गयी। इसकी ओरसे कलकत्तेमे दो सभाएं हुई । एक सभा वड़ा- वाजारमे हुई थी। उसमे भी मैं मौजूद था। इस सभाकी विशेषता यह थी कि इसमें सव भाषण हिन्दीमे हुए थे। श्री विपिनचन्द्र पाल और लोकमान्य तिलक भी हिन्दीमे बोले थे। श्री पालको हिन्दी वोलनेमे कोई विशेप कठिनाई नही प्रतीत हुई, किन्तु लोकमान्यकी हिन्दी टूटी-फूटी थी। बड़ावाजारमे उत्तर भारतके लोग अधिकतर रहते है । उन्हीकी सुविधाके लिए हिन्दीमे ही भाषण कराये गये थे । बङ्गालमे इस नये दलका अच्छा प्रभाव था। कलकत्तेकी काग्रेसके वाद सयुक्तप्रान्तको सर करनेके लिए दोनो दलोमे होड़ लग गयी। प्रयागमे दोनो दलोके बड़े नेता आये और उनके व्याख्यानोको सुननेका मुझको अवसर मिला। सबसे पहले लोकमान्य आये। उनके स्वागतके लिए हमलोग स्टेशनपर गये। उनकी सभाका आयोजन थोड़ेसे विद्यार्थियोने किया था। शहरके नेताअोमेसे कोई उनके स्वागतके लिए नही गया। उनकी सवारीके लिए एक सज्जन घोडागाडी लाये थे । हमलोगोने घोडा खोलकर स्वयं गाडी खीचनेका आग्रह किया, किन्तु उन्होने स्वीकार नही किया । लोकमान्य के शब्द थे---'Reserve that enthusiasm for a better cause.~-इस उत्साहको किसी और अच्छे कामके लिए सुरक्षित रखिये।' एक वकील साहबके अहातेमे उनका व्याख्यान हुआ था। वकील साहब इलाहावादसे वाहर गये हुए थे। उनकी पत्नीने इजाजत दे दी थी। हमलोगोने दरी विछायी । एक विद्यार्थीने 'वन्दे मातरम्' गान गाया और अग्रेजीमे भापण शुरू हुआ । लोकमान्य तर्क और युक्तिसे काम लेते थे। उनके भाषणमे हास्यरसका भी पुट रहता था। किन्तु वह भावुकतासे बहुत दूर थे। उन्होने कहा कि अंग्रेजी मसल है कि ईश्वर उसीकी सहायता करता है जो अपनी सहायता करता है । तो क्या तुम समझते हो कि अग्रेज ईश्वर से भी बड़ा है ? इसके कुछ दिनो वाद श्री गोखले आये और उनके कई व्याख्यान कायस्थ पाठशालामे हुए। एक व्याख्यानमे उन्होने कहा कि आवश्यकता पड़नेपर हम टैक्स देना भी वन्द कर सकते है। इसके बाद श्री विपिनचन्द्र पाल पाये और उनके ४ ओजस्वी
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४५२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।