यूरोपकी स्थिति वस्तु मानती है। किन्तु सर्वसाधारणके लिए यह पद्धति अनिष्टकारी है। इस पद्धतिके अधीन रहते हुए जनताका जीवन नीरस और शुष्क हो जाता है । लोग अपनी तुच्छताका अनुभव करते है और उनको इससे बचनेकी राह भी नजर नही आती। यह पद्धति जनताका अपने पूर्ण विकासके लिए आह्वान नही करती, क्योकि वह डरती है कि ऐसे आह्वानका क्या परिणाम होगा । उसका निश्चित मत है कि यदि जनताने इस प्रकारको सुना और उसपर अमल किया तो उनकी खैरियत नही । अतः इसमे आश्चर्य करनेका कोई कारण नहीं है कि जो समाज अपने सदस्योके. व्यक्तित्वके विकासको इस प्रकार रोकता है वह उन भावोको उभारनेमे समर्थ नहीं होता जिनके उभरने और व्यक्त होनेसे ही कोई पद्धति सुदृढ होती है। समाजपर प्रभुत्व रखनेवाला वर्ग जनतासे भयभीत हो जाता है। वह अपने स्थिर स्वार्थोकी रक्षाके लिए अपने देशके स्वातन्त्र्यको भी खतरेमे डालनेसे नही हिचकता । इस युद्धने यह सिद्ध कर दिया है कि देशकी आजादीकी रक्षा विना वर्ग स्वार्थका परित्याग किये नही हो सकती । फासके एक समुदायने हिटलरका स्वागत इसलिए किया कि कही जनता विद्रोहकर उस समुदायके स्थिर स्वार्थीका लोप न कर दे । दूसरी ओर जनता स्वयं अपना नेतृत्व करनेमे असमर्थ होती है । वह नेताकी तलाशमें होती है । वह कोई साहसिक कर्म करना चाहती है। समाजकी सस्थानोपर जो उसकी आस्था थी, वह नष्ट हो चुकी होती है और उसका मोह टूट चुका होता है । इस अवसरपर जनताको मनोवृत्तिसे अनुचित लाभ उठाकर प्रतिक्रिया जनताके सम्मुख एक नवीन आशा और एक साहसिक कर्मके रूपमे उपस्थित होती है । प्रतिक्रिया नाना प्रकारके प्रलोभन देती है और उसके कार्यक्रममे प्रत्येक पीड़ित वर्गके लिए कोई न कोई लुभानेवाली योजना होती है । जनता इस अपीलको सुनती है, क्योकि यह उसको अपनी व्यर्थतारो बचनेका रास्ता दिखाती है। वह प्रतिक्रियावादियोके जालमे आ जाती है और उनका अनुसरण करती है । यह सच है कि प्रतिक्रियाके नायक सच्चे मसीहा नही है । उनके पास कोई दिव्य सन्देश नही है जिससे जनताका कल्याण हो सके । किन्तु जनता एक नवीन सन्देगकी भूखी होती है और जिस तरह एक रोगी जो अपने जीवनसे निराश हो चुका है, जडी-बूटी बेचनेवाले और तन्त्र-मन्त्र करनेवाले नीमहकीमकी शरणमे जाता है, उसी तरह निराश जनता सन्देशसे आकृष्ट हों उस नायककी ओर दौडती है और इसका विचार-विमर्श नही करती कि यह सन्देश झूठा है या सच्चा । यही अवस्था जर्मनीके लोगोकी हुई । हिटलरके उत्थानका रहस्य इसीमे है संघर्ष और विरोध किन्तु यह मोह-माया वहुत दिनोतक नही चल सकेगी। मित्रराष्ट्रोने फासिज्मपर विजय प्राप्त की है। इससे यह सम्भव है कि शासक वर्ग कुछ दिनोतक चैनसे बैठने पाये, किन्तु वह बहुत दिनोतक पाराम नही लेने पायेगे । विजयसे वढी हुई उनकी प्रतिष्ठा अधिक कालतक प्रचलित सस्थानोमे जनताके पुराने विश्वासको पुनर्जीवित न कर सकेगी। ससारमे सर्वत्र जनताका विश्वास क्रमागत संस्थानोपरसे उठता जाता है। पुरातन
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