३८४ . राष्ट्रीयता और समाजवाद अच्छी थी। अरब उसके नियन्त्रणमे था; ईराक और पैलेस्टाइनपर राष्ट्र-संघकी अोरसे उसको मण्डेट' मिल चके थे; तुर्कीका साम्राज्य छिन्न-भिन्न कर दिया गया था; फारसका मैदान साफ पाकर १९१६ (वि० सं० १९७६) के समझौते के द्वारा फारसपर अपना नियन्त्रण मृट्ट करने और अपने अधिकारका विस्तार करनेकी चेप्टा की गयी. काकमस, ट्रेन्स काकेशिया, ट्रेन्स कैस्पिया और तुर्कीस्तान उनके कब्जेमें था । इंग्लडके कुछ राजनीतिज्ञ यह कहने लग गये थे कि हम काकससकी पर्वतमालाको ब्रिटिश माम्राज्यकी रक्षाकी उत्तरी सीमा बनायेंगे । यह अवस्था सन् १९१६ (वि० सं० १९७६) में थी। पर दो वर्षके भीतर ही काया पलट हो गया । अफगानिस्तानकी स्वतन्त्रताको ब्रिटिश सरकारको मानना पड़ा और अफगानिस्तानकी परराष्ट्र-नीति ब्रिटिणके अधीन न रहकर अफगानिस्तानके वादशाहके अधीन हो गयी । फारसकी मजलिसने लार्ड कर्जनके समझौतेको ठुकरा दिया और वहाँसन् १९२१ ईसवी (वि० सं० १९७८) में राज्य-क्रान्ति हो गयी। तुर्क कमालपाशाके नेतृत्वमें ग्रीक लोगोके विरुद्ध वहादुरीके साथ लडे और उनपर पूरी विजय प्राप्त की । प्रधान मिन-राष्ट्रोने अंगोराकी गवर्नमेण्टको सुलहकी वातचीतके लिए आमन्त्रित किया और लोसानकी कान्फरेंस मे सेवेकी अपमानजनक मन्धि वदल दी गयी। तुर्कोकी लगभग वह सब माँगे स्वीकृत हुई जो उन्होने २८ जनवरी, सन् १९२० (१५ माघ सं० १९७७) के 'टर्किश नेशनल पैक्ट' में पेश की थी । सन् १९२१ (वि० सं० १९७८) मे सोवियत रूसने फारस, , तुर्की अफगानिस्तान और बुखारासे सन्धियाँ की । जारके समय के सुलहनामे जिनके द्वारा रूसने इन देशोमें तरह-तरहके अधिकार प्राप्त किये थे, रद कर दिये गये। जो सुलहनामा फारसके साथ हुआ था उसकी मुख्य-मुख्य शर्ते नीचे दी जाती है- १. सोवियत शासन जारकी अत्याचारकी नीतिका सदाके लिए परित्याग करता है और उसकी यह इच्छा है कि फारसके लोग स्वतन्त्र और प्रसन्न रहे, और उनके देशपर उनका अक्षण्ण अधिकार रहे और इसलिए वे सन्धियाँ और भर्तनामे रद किये जाते है, जो फारसके लोगोके अधिकारोको कम करनेके अभिप्रायसे किये गये थे। २. सोवियत शासन जारकी उस नीतिको न्यायके विरुद्ध और बुरा समझता है जिसका उद्देश्य एशियाके राष्ट्रोका बन्दरबाँट करनेके लिए यूरोपके और राष्ट्रोके साथ सन्धि करना था। इसलिए सोवियत शासन इस नीतिका सर्वथा परित्याग करता है और घोपित करता है कि वह किसी ऐसे कार्यमे भाग नहीं लेगा जिसका उद्देश्य फारसके अक्षुण्ण अधिकारको कमजोर करना हो और वह उन सव सन्धियोको रद करता है जो जारकी गवर्नमेण्टने फारसको नुकसान पहुंचानेके लिए अन्य शक्तियोके साथ की थी। ३. सोवियत शासन जारकी गवर्नमेण्टकी उस पार्थिक नीतिको अस्वीकार करता है जिसको वह फारसके सम्बन्धमे वर्तती थी और जिसका उद्देश्य, आर्थिक उन्नतिकी दृष्टिसे नहीं, बल्कि दासताकी शृङ्खलामे वाँधनेकी दृष्टिसे, फारसको कर्ज देना था । सोवियत १. Mandate. २. ऍग्लोपणियन एग्रीमेण्ट Anglo Persian agreement. 3. Lausanne conference. %. Treaty of Sveres.
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३९९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।