पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३९८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सोवियत रूसकी एशिया-सम्बन्धी नीति ३८३ और अफगानिस्तानका एक सघ खडा कर दिया । जारोके समयसे ही इन तीन मुस्लिम राष्ट्रोपर अपना-अपना अधिकार जमानेके लिए इग्लैण्ड और रूसके वीच एक गहरी प्रतिद्वन्द्विता चली आती थी और यद्यपि अव जारका शासन उठ गया था तथापि आपसके विरोधके कारण यह स्पर्धा पहलेकी अपेक्षा और भी अधिक वढ गयी थी। पर सोवियत रूस इन राष्ट्रोको दवाना नहीं चाहता था। यही नही, वह उनकी रक्षा और सहायता करना चाहता था । एशियाके साम्राज्यवादी राष्ट्र जापानकी भी उसने उपेक्षा नहीं की। वह तरह-तरहके प्रलोभन देकर जापानको भी सन्तुष्ट करना चाहता था । सक्षेपमे वह वाल्टिकसे लेकर पैसिफिकतक एक ऐसे सघको तैयार करना चाहता था जिसमे परस्पर आर्थिक सहयोग हो और जो समान रूपसे साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए प्रस्तुत हो । यह नीति एक दिनमे सफल नही हो सकती थी। वहुत अध्यवसाय और धैर्यके साथ निरन्तर काम करते रहनेके उपरान्त ही इस नीतिका प्रभाव दिखलायी पडा । पर पूर्व इसके कि इस नीतिका कोई असर पडे, इस वातकी आवश्यकता थी कि सोवियत रूस एशियाके राष्ट्रोका विश्वास-पात्र वने । इसके लिए उसने अनेक उपाय किये । एशियाके लोगोकी काग्रेस बुलानेका आयोजन किया गया। पहली काग्रेस सन् १९२० (वि० सं० १९७७) मे बाकूमे हुई थी । कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल'की ओरसे जिनोवीव ने इस कांग्रेसमे जोभापण दिया था उसका सार यही था कि एशियाके लोगोको एक साथ मिलकर यूरोपके साम्राज्यका विरोध करना चाहिये । इसके पश्चात् कई वार एशियाके श्रमजीवियो- की कांग्रेसे भी की गयी। एक काग्रेस सन् १९२७ (वि० स० १९८४) मे हैकाऊ मे हुई थी, जिसमे चीन, जापान, कोरिया, ओशेनिया और ईस्ट इण्डीजके श्रमजीवियोके प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे। इन काग्रेसोका उद्देश्य साम्राज्यवादके विरुद्ध प्रचार करना और एशियाकी विविध जातियोमे परस्पर भ्रातृभावकी स्थापना करना था । इन कार्योका प्रभाव ग्रेटन्निटेनपर तत्काल ही पडा और सन् १९२० (वि० स० १९७७) मे लायड जार्जकी गवर्नमेण्टने रूससे मेल करनेका प्रस्ताव किया, क्योकि उन्होने देखा कि यदि हम ऐसा नही करेगे तो एशियामे हमारा प्रभाव बहुत घट जायगा । सन्धिकी जो शर्ते लाड जार्जने सोवियतके प्रतिनिधि कासिन के सामने रखी थी उनमेसे एक शर्त यह भी थी कि सोवियत रूस एशियामे-विशेपत भारत और अफगानिस्तानमे-ब्रिटिश साम्राज्यके विरुद्ध आन्दोलन नही करेगा। पर कई घटनाएँ ऐसी हो गयी जिनके कारण उस समय रूस और इग्लैण्डके वीच कोई समझौता नहीं हो सका। समझौतेकी बातचीत कभी चलती थी और कभी बन्द हो जाती थी। पूर्व इसके कि कोई समझौता हो सके रूसने तुर्की, फारस और अफगानिस्तानसे इग्लैण्डके प्रभावको हटा दिया । सन् १९१९ (वि० स० १९७६) मे इग्लैण्ड का एशियामे वहुत वडा दवदवा था । उसके साम्राज्यका बहुत विस्तार हो गया था । यूरोपके अन्य राष्ट्रोकी अपेक्षा उसकी आर्थिक स्थिति बहुत 9. Communist International. P. Zinoviev, ३. Hankow. ४. Crassin.