पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३९०

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संस्कृतवाडमयका महत्त्व और उसकी शिक्षा ३७५ सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्योको अपनाना होगा। राष्ट्रीय एकताके लिए किसी विशेष भापा या लिपि का अनुचित पक्षपात छोडकर केवल राष्ट्रहितसे प्रेरित होना होगा । जनतन्त्रकी भावनासे प्रेरित होकर हमको सव काम करने होगे। हमारा चिन्तन वैज्ञानिक होगा और हम ज्ञानको निरन्तर वृद्धि करते रहेगे। जिस कुशल चेतनासे प्रेरित होकर प्राचीन ऋपियोने सकल समाजके कल्याणके लिए सत्पथका उद्घाटन किया था उसी कुशल चेतनाकी भावना कर उन्ही आर्य और उदात्त भावोसे प्रेरित होकर हम अाजकी अावश्यकतानोकी पूतिके लिए व्रती हो और बहुजन समाजके हित-सुखका विधान कर अभ्युदय और नि श्रेयसकी प्राप्तिके लिए यत्नवान् हो। तभी हम अपना कल्याण और विश्वका कल्याण कर सकेगे। तभी संसारमे शान्ति, तुष्टि और पुष्टि होगी। आशा है आप ईप्सित फल प्राप्त करेंगे और सस्कृत विश्वविद्यालयका यह शुभसंकल्प विद्वज्जनोंका सहयोग प्राप्त कर सफल होगा । प्रवर्त्तता प्रकृतिहिताय पार्थिव., सरस्वती श्रुतमहतां महीयसाम् ।। सार्थो नन्दतु सज्जनानां सकलो वर्ग. खलाना पुन- नित्यं खिद्यतु भवतु ब्राह्मणजन सत्याशीः सर्वदा । मेघो मुञ्चतु सचितमपि सलिल सस्योचित भूतले लोको लोभपराडमुखोऽनुदिवसं धर्मे मतिर्भवतु च ॥' १. 'जनवाणी' फरवरी, सन्, १६४६ ई०