३४० राष्ट्रीयता और समाजवाद नही चल सकता । यह ठीक है कि छात्रवृत्ति देकर विदेशमे विद्यार्थी भेजे जा रहे हैं किन्तु कतिपय कठिनाइयोके कारण इनकी संख्या स्वल्प ही हो सकती है । अतः, आजकी अवस्थाको देखते हुए अपने देशमे विविध प्रकारकी शिक्षाकी विणेप व्यवस्था करनी होगी और कुछ कालके लिए बाहरसे भी विशेपन्न बुलाने होगे । केन्द्रीय गवर्नमेण्टको विश्वविद्यालयोंकी शिक्षाके व्ययका एक अच्छा भाग देना चाहिये चाहे वह विद्यालय प्रान्तीय विषय ही क्यों न हों। इस सहायताके विना विश्वविद्यालयोकी तात्कालिक आवश्यकताओंकी न पूर्ति हो सकती है और न उनका विकास ही । केन्द्रीय गवर्नमेण्टको स्वयं इस समय एक बड़ी संख्यामे विणेपनोकी आवश्यकता है और सदा रहेगी। यह विशेपन प्रान्तोंके विश्वविद्यालयोसे ही आते है । इनकी संख्या अल्प है । आवादीके २२०६ मंसे केवल एक व्यक्ति युनिवमिटीकी शिक्षा पाता है, जब कि रूसमे अनुपात ३०० मेंसे १ है । अतः राज्यका काम सुकर करनेके लिए तथा विविध सामाजिक सेवायोका आयोजन करनेके लिए विणेपनोकी संख्यामे द्रुतगतिसे वृद्धि होनी चाहिये । इस कार्यका महत्त्व सर्वसाधारण- की शिक्षासे भी इस समय अधिक है । इसके लिए पोस्टग्रेजुएटकी गिक्षा तथा वैज्ञानिक अन्वेपणका समुचित प्रबन्ध तत्काल होना चाहिये । किन्तु इस कार्यके लिए प्रचुर परिमाणमें धन चाहिये । हमारे देणके विश्वविद्यालय आर्थिक सहायताके लिए राज्यपर निर्भर करते है । यह सत्य है कि हमारे देशमे दानका बड़ा महत्त्व है और इसकी परम्परा भी है। किन्तु दानका विविध रूप है और जो कुछ ब्रह्मदान मिलता है वह प्राय. स्थानीय विद्यालयोको जाता है । इस अवस्थामे केन्द्रीय गवर्नमेण्टका विशेष कर्तव्य है और हमारी प्रान्तीय गवर्नमेण्टको भी सहायताको रकमको उचित मात्रामे बढ़ाना चाहिये । यह सन्तोपका विषय है कि माननीय शिक्षामन्त्रीने हालमे युनिवर्सिटी ग्रान्ट्स कमेटीका संगठन किया है और वैज्ञानिक अन्वेपणके कार्यके लिए भी एक समिति नियुक्त की है। हमारा देश इतना विस्तृत है कि यहाँ परीक्षा लेनेवाले विश्वविद्यालयोकी भी अत्यन्त आवश्यकता है । यहाँ उच्चशिक्षा थोडेसे चुने हुए केन्द्रोमे नही केन्द्रित की जा सकती। लार्ड हैलडेनका तो यहाँतक विचार है कि इंगलैण्ड ऐसे छोटे देशमे भी ऐसे विश्वविद्यालय अनिवार्य है । इसलिए आगरा विश्वविद्यालयकी नितान्त आवश्यकता है। किन्तु यहाँ भी अन्वेपणको प्रोत्साहन मिलना चाहिये । एक दूसरा विषय जिसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ शिक्षाका माध्यम है । अब समय आ गया है जब हमको राष्ट्रभापाके द्वारा ऊँची-से-ऊंची शिक्षाका आयोजन कर लेना चाहिये । जव राज काजकी भापा बदल गयी है तब तो यह काम तेजीसे होना चाहिये । शिक्षाका माध्यम यथासम्भव तत्काल बदल जाना चाहिये । इसका यह अर्थ नही है कि हमको किसी विदेशी भापाका अब सहारा नही लेना है। विदेशी भापाकी आवश्यकता बहुत दिनोतक बनी रहेगी, किन्तु वह गिक्षाका माध्यम न होगी और शिक्षाके कार्यक्रममें उसको गीण स्थान प्राप्त होगा। इस सम्बन्धमे यह भी कहना आवश्यक है कि अपनी भापामे सब विपयकी ऊँची-से-ऊँची पुस्तकें लिखी जानी चाहिये । किन्तु यह काम किसी एक विश्वविद्यालयके वसका नहीं है । इसके लिए यदि गवर्नमेण्टकी ओरसे कोई
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