भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास १६ इसका उल्लेख किया है । लार्ड मिण्टोने मुसलमानोको आश्वासन दिलाया कि नये शासन-विधानमे मुसलमानोके स्वत्त्वोकी रक्षाका पूरा-पूरा ध्यान रखा जायगा और पृथक् निर्वाचनद्वारा अपनी सख्यासे अधिक प्रतिनिधि चुननेका अधिकार उनको दिया जायगा । १६०६ मे ही लार्ड मिण्टोके प्रोत्साहनसे मुस्लिम लीगकी स्थापना हुई । इसका उद्देश्य भारतमे वसनेवाली अन्य जातियोके साथ स्नेह-भाव रखते हुए अपनी जातिके स्वत्त्वोकी रक्षा करना था। लीगके उद्देश्योमे मुसलमानोकी राजभक्तिकी घोषणा की गयी थी। इस प्रकार पृथक् निर्वाचनकी प्रथाका प्रारम्भ हुआ । इससे साम्प्रदायिक भावोको उत्तेजना मिली और मुसलमानोकी देखा-देखी १६०६ मे पंजाबमे प्रान्तीय हिन्दू-सभाकी स्थापना हुई और यह निश्चय हुआ कि अगले वर्ष अखिल भारतवर्षीय हिन्दू-सभाका आयोजन किया जाय । मुस्लिम लीगके अधिवेशनोकी काररवाईको देखनेसे यह प्रत्यक्ष है कि मुसलमानो- मे साम्प्रदायिक भावनाकी वृद्धि होती चली गयी और वे हिन्दुप्रोकी शक्ति और प्रभावको कम करनेके उपाय सोचने लगे । उदाहरणके लिए सन् १९१० मे मुस्लिम लीगने यह प्रस्ताव किया कि अगली मनुष्य-गणनामे अछूतोको हिन्दू न लिखा जाय । उनका तर्क यह था कि अछूतोको हिन्दुअोमे सम्मिलित करनेसे अछूतोका काफी नुकसान होता है । उनकी शिक्षाकी कोई व्यवस्था नहीं की जाती और हिन्दू निर्वाचन-क्षेत्रमेसे वे अपने सच्चे प्रतिनिधियोको भी नही चुनवा सकते । इसके अतिरिक्त मुसलमानोका भी नुकसान होता है ; क्योकि इस प्रकार हिन्दुअोको अपनी संख्यासे अधिक प्रतिनिधित्व मिल जाता है । उन्होने इस आशयका एक प्रार्थना-पत्र भी सरकारकी सेवामे भेजा, पर हिन्दुप्रोके घोर विरोधके कारण उनका आशय पूरा न हो सका । आगे चलकर कुछ ऐसी घटनाएँ उपस्थित हुई जिनके कारण मुसलमानोके भाव धीरे-धीरे सरकारके प्रतिकूल होने लगे। काग्रेस इस समय निस्तेज हो गयी थी और दमनके कारण राष्ट्रीय आन्दोलनकी गति मन्द पड़ गयी थी । गरम दलके प्रमुख नेता और कार्यकर्ता या तो जेलमें वन्द कर दिये गये थे या समयको अनुकुल न समझकर विदेश चले गये थे। इसलिए सरकारको इस समय हिन्दुप्रोसे कोई भय न था ; तथापि बङ्गालके हिन्दुअोके असन्तोषको दूर करनेके लिए १९११ मे बन-भड्ग रद्द कर दिया गया। इससे मुसलमानोकी आँखे खुली। वे अव धीरे-धीरे समझने लगे कि केवल हिन्दुओको दुर्वल करनेके अभिप्रायसे ही सरकारने मुसलमानोसे मित्रता बढायी थी । वन-भड़के समय मुसलमानोसे कहा गया था कि तुम्हारे लाभके लिए ही बगालके दो टुकड़े किये जाते है । पूर्वी वङ्गाल और आसामके प्रान्तमे मुसलमानोकी जन-सख्या हिन्दुअोसे अधिक थी। ढाका इसकी राजधानी थी। अंग्रेजोकी हुकूमतके पहले वगालकी राजधानी मुर्शिदाबाद थी और ढाका उसका एक प्रसिद्ध नगर था। उनकी पुरानी स्मृतियाँ जागृत हो गयी थी और उनको यह आशा बँध गयी थी कि अपने जातीय विकासके लिए उनको उचित क्षेत्र मिल गया है. पर वग- भङ्गके रद्द होनेसे इस आशापर पानी फिर गया । इसलिए मुसलमान सरकारसे वहुत असन्तुष्ट थे। इधर यूरोपमे सन् १९१२-१३ मे तुर्कीका ईसाई ताकतोसे युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध बालकन-युद्धके नामसे इतिहासमे प्रसिद्ध है । यह युद्ध मुसलमान और
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