मार्क्सवाद और पूंजीवादी विज्ञान ३०३ वर्णन किया था, और पूंजीवादी अर्थशास्त्रियोने वर्गोके आर्थिक ढाँचेका । मैंने जो कुछ नवीन किया वह यह था कि मैने प्रमाणित कर दिया कि वर्गोका अस्तित्व उत्पादनके विकास- क्रमकी विशेप ऐतिहासिक अवस्थासे सम्बद्ध है, और वर्गसंघर्प निश्चित रूपसे श्रमजीवी वर्गके अधिनायकत्वमे परिणत होता है, और यह अधिनायकत्व अस्थायी है और तभीतक रहता है जबतक वर्गविहीन समाजकी स्थापना नहीं हो जाती।" इन नवीन सिद्धान्तोके कारण जो पूंजीवादी विचारकोको स्वीकृत न थे उन्हें अपनी जगहसे हटना पडा और वे फिर मानव-सिद्धान्तकी ओर झुके । कुछ हदतक पूंजीवादियोका खुदपसन्दीका स्वभाव और मनोवृत्ति उनको सामाजिक नियमोका स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करने नही देती। किन्तु उनके दृष्टिकोणमे जो गहरा परिवर्तन उपस्थित हो गया है उसको समझनेके लिए महज इतना काफी नही है । इस परिवर्तनका मुख्य कारण यह था कि सामन्तशाहीपर विजय प्राप्त करनेके उपरान्त पूंजीपतियोको क्रान्ति या क्रान्तिके सिद्धान्तोकी जरूरत वाकी न रही । एक नये दुश्मन अर्थात् श्रमजीवी वर्गके मुकाविलेमें आ जानेसे वर्गसंघर्पकी तरफ उसका रुख बदल गया । क्रान्ति और वर्गसंघर्प विलकुल ठीक है जबतक वे पूंजीपतियोके स्वार्थोकी हिमायत करते हैं । किन्तु जब वे पूँजीपतियोका विरोध करने लगते है तब वे हानिकारक हो जाते है और उनका दबाना वाजिव हो जाता है । वारनार भी जो साधारणतया गहरी सूझका आदमी था अपने सिद्धान्तको छोड़नेको तैयार हो गया, जब एक वार क्रान्ति उसकी राजनीतिक योजनाकी सीमाका उल्लघन कर गयी। वारनार सम्पत्तिका जवर्दस्त समर्थक था, यही हाल गुइजो ( Gulzot ), मिग्ने ( Mignet ) और थीरी ( Thierry ) नामक ऐतिहासिकोका है । जव मध्यम श्रेणीका विरोध करनेके लिए श्रमजीवी वर्ग आगे आया तव इतिहास-लेखकोके लिए वर्गसघर्ष एक शर्मकी वात हो गयी और सामाजिक शान्ति इनको अभीष्ट होने लगी। इतिहासके क्षेन्नमे वारनार अद्वैत दृष्टिका माननेवाला था, किन्तु गुइजोकी द्वैत दृष्टि थी। वह सामाजिक उन्नतिमे और व्यक्तिगत उन्नतिमे अन्तर करता था और इन दोनोको एक दूसरेसे स्वतन्त्र मानता था। वह इतिहासमे दैवी योजनाका हाथ देखने लगा था। विकासवाद जिसका १९वी शताब्दीके पूर्वार्धमे वडा जोर था, जाहिरा एक उन्नतिशील सिद्धान्त था, खासकर अपरिवर्तनशील मानव-स्वभावके विचारोके मुकाविलेमे । किन्तु वास्तवमे विकासवादका उपयोग प्रारम्भसे ही प्रतिक्रियाके समर्थनमे होने लगा था, जहाँतक क्रान्तिकारी वर्ग सिद्धान्तके विरोधका सवाल था। जब क्रान्तिका मार्ग पूंजीपतियोके स्वार्थका सहायक न रह गया किन्तु उनके लिए खतरनाक हो गया तब यह कहा जाने लगा कि समस्त संसारकी उन्नति विकासद्वारा होनी चाहिये न कि क्रान्तिद्वारा । पूंजीवादी विज्ञानका मार्ग अव प्रतिक्रियाका मार्ग हो गया । उसने क्रान्तिकारी वर्ग सिद्धान्तको छोड़ दिया । सेन्ट साइमनकी सामाजिक शिक्षा और हेगेलकी दार्शनिक शिक्षा उस नये सम्मान और विचारके फल थे जो क्रान्तिके युगमे पैदा हुए थे, किन्तु इनकी भी द्वैत दृष्टि थी और यद्यपि यह नये दृष्टिकोणसे प्रभावित हुए थे तथापि यह पुराने तास्सुब और विचारशैलीसे अपनेको मुक्त नही कर सकते थे । सेन्टसाइमनका वर्गसिद्धान्त पिछली
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