वर्गसंघर्पकी अनिवार्यता २६५ नेता इसी प्रकारके थे। आरम्भमें किसानोको इसका विश्वास ही न होता था कि राजा सामन्तवर्गके शोपणका समर्थक है । किसानोका विश्वास यह था कि उनपर जो अत्याचार होता है, उनकी मांगे जो स्वीकार नही की जाती वह भ्रप्ट राज्य-कर्मचारियो या बुरे स्वभाववाले स्थानीय सामन्तोके कारण ही । राजाको तो वे पृथ्वीपर सर्वन्यायकारी परमपिता परमात्माका साक्षात् अवतार मानते थे। किन्तु राजासे वार-बार फरियाद करनेपर भी जव उल्टे उनका दमन ही होता था, उनके प्रतिनिधि जेलोमे डाल दिये जाते या मौतके घाट उतार दिये जाते थे तव कही जाकर उनकी आखे खुलती थी । किन्तु फिर भी वे यह नही अनुभव करते थे कि उनको राजप्रथाका ही विनाश करना है, बल्कि अपने नेताको ही वे राजा स्वीकार कर लेते थे। किसानोके विद्रोह दूसरे देशोकी तरह हिन्दुस्तानमे भी होते रहे है, किन्तु उनके शृंखलाबद्ध इतिहासके ठीक-ठीक न मिल सकनेका कारण यह है कि हमारे यहाँ ऐतिहासिक घटनाअोका नियमित रूपसे वृत्तान्त रखनेकी प्रथा नही रही है । इसके अतिरिक्त बहुतसी वाते सरकारी कागजातके भीतर ही छिपी है जिनकी ठीक-ठीक छानवीन अंग्रेजी हुकूमतके हटनेके बाद ही की जा सकती है । विभिन्न प्रान्तोके जिलेके गजेटियरो ( District gazetteers ) की छानवीन करनेपर किसानोके अनेक विद्रोहोका पता चलता है, विशेपकर गुजरात और विहार के भील, सन्थाल आदि आदिमनिवासी जातिके किसानो- द्वारा । इन विद्रोहोके नेता भी अक्सर ऐसे ही लोग होते थे जो यह कहते थे कि उन्हें किसी खास देवीसे विद्रोह करनेकी प्रेरणा मिली है। मुस्लिम शासन तथा ब्रिटिश शासनके प्रारम्भिक कालमे इस प्रकारके अनेक विद्रोहोका वर्णन मिलता है । सम्पत्तिजीवी वर्गका महत्त्व किसानोके विद्रोहने पुरानी व्यवस्थाको नष्ट करके नयी व्यवस्थाकी स्थापना करनेवाले आधारभूत युद्धका रूप तभी धारण किया जब कि सम्पत्तिजीवी वर्ग ( bourgeoisie ) ने भी इस युद्धमे हाथ बँटाया। यह हम पहले बता चुके है कि इस सम्पत्तिजीवी या पूंजीवादी श्रेणीके विकासके मार्गमे सामन्तवादी प्रथा किस प्रकार वाधक थी और यह कि इस श्रेणीके हितोकी रक्षा और वृद्धि तभी हो सकती थी जब कि सामन्तशाही वर्गके हाथसे निकलकर राजनीतिक प्रभुत्व इस वर्गके हाथमे आ जाय । सम्पत्तिजीवी वर्ग ऐसा नया उठता हुआ वर्ग था जिसके सदस्योकी सख्या बहुत थोडी थी । ऐसी हालतमे यह वर्ग पुराने सामन्तवर्ग- की ताकत खत्म करके अपनी ताकत उसी हालतमे कायम कर सकता था जव कि सामन्त- शाहीवर्गके साथ लडनेमे समाजके दूसरे वर्गों अर्थात् किसानो और कारीगरो आदिको भी वह अपनी ओर मिला सकता। यही कारण है कि सम्पत्तिजीवी वर्गने समता, स्वतन्त्रता और भ्रातृभावके नारे सामने रखकर किसानोकी सहानुभूति प्राप्त की और उनकी मददसे नये पूंजीवादी प्रजा-सत्तात्मक राज्यकी स्थापना की । किसानोका वर्ग ऐसा नहीं है जिसके सभी सदस्योके हित एक समान हो । भूमिरहित या कम भूमिवाले छोटे किसानका स्वार्थ स्पप्टत. बड़े किसानके हितसे टक्कर खाता है ।
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