समाजवादका मूलाधार--मानवता २६१ करना चाहता है और इस तरह ऐतिहासिक विकासके सिद्धान्तोका निरूपण कर वह दुनियाकी तलाश करता है । अवतकके जो दर्शन है वह जीवनकी पहेलीका हल पका- पकाया तैयार रखते है, किन्तु मार्क्स सदाके लिए सव अवस्थानोका पहलेसे ही नही उत्तर दे देता । वर्तमान जगत्की आलोचना करना वह अपना काम समझता है और निहायत वेदर्दीके साथ वह इस कार्यको सम्पन्न करता है । वह नतीजोसे घबराता नही और अधिकारियोके साथ टक्कर लेनेसे भी नही डरता। उसकी शिक्षा है कि ऐतिहासिक विकासके क्रमको समझनेकी कुजी समाजमे है । मनुष्य सामाजिक है । संसारसे बाहर उसका अस्तित्व नही है । प्रत्येक सामाजिक व्यवस्थाका अाधार उत्पादनकी क्रिया और वस्तु-विनिमय होता है । क्या उत्पन्न होता है, कैसे उत्पन्न होता है और उत्पन्न वस्तुप्रोका विनिमय किस प्रकार होता है ये वाते निश्चित करती है कि उत्पन्न वस्तुप्रोका वितरण कैसे होगा और समाजमे वर्ग-विभाजन किस प्रकार होगा। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक क्रान्तियोके अन्तिम कारणोकी तलाश मनुष्योके मस्तिष्कमे न होनी चाहिये, अपितु उत्पादनके प्रकार और विनिमयके परिवर्तनोमे । इन कारणोका पता युगके दर्शनमे नही किन्तु समयके आर्थिक सगठनमे मिलेगा। यह ज्ञान बढता जाता है कि वर्तमान सामाजिक संस्थाएँ बुद्धिसगत और न्याययुक्त नही है और यह इस बातका चिह्न है कि उत्पादनके तरीकोमे और वनिमयके प्रश्नोमे खामोशीके साथ ऐसे परिवर्तन होते रहे है जो सामाजिक व्यवस्थाके अव अनुकूल नही पडते । इससे यह भी स्पप्ट है कि जो उपाय उन बुराइयोको दूर कर सकते है जिनका पता चला है उनको भी किसी-न-किसी रूपमें उत्पादनकी बदली हुई अवस्थामे मौजूद रहना चाहिये । इन उपायोका बुद्धिवलसे ईजाद नही करना है किन्तु मौजूदा उत्पादनकी अवस्थामेसे तलाश करके निकालना है। वर्तमान सामाजिक प्रणाली पूंजीवादी है । ज्यो-ज्यो इसका विकास होता जाता है त्यों-त्यो उत्पादनकी शक्तियो और उत्पादनके प्रकारका सघर्ष बढता जाता है। यह संघर्ष किसीकी इच्छाके अधीन नही है । यह उन लोगोकी भी इच्छाके परे है जो इस संघर्षको पैदा करते हुए मालूम होते है। वर्तमान प्रणालीकी बुराइयोको दूर करनेका साधन सर्वहारा मजदूर है । पूंजीवादी उत्पादन जहाँ मुट्ठीभर पूंजीपतियोमे सम्पत्तिको केन्द्रित करता है वहाँ वह अकिञ्चन मजदूरको भी पैदा करता है । मजदूरवर्गके पूंजीवादी समाजका एक वर्ग है जो सार्वभौमिक चरित्रवाला है क्योकि इसकी तकलीफे सार्वभौमिक है। यह किसी विशेष अधिकारकी मांग नही करता, क्योकि कोई खास अन्याय उसके साथ नही किया गया है क्योकि वह स्वय सरापा अन्याय है । यह वर्ग किसी इतिहास- सिद्ध अधिकारके नामपर अपील नही कर सकता, किन्तु मानवताके नामपर ही इसकी अपील होती है, यह वर्ग विना अन्य वर्गोके नजात दिलाये नजात नही पा सकता । यह वह वर्ग है जिसमे मानवताका सर्वथा लोप हो गया है और यह मानवताको पूरी तरह प्राप्त करके ही अपनेको पा सकता है। सर्वहारा मजदूरमे आत्मचेतनाकी कमी है। जब उसको उस प्रणालीका ज्ञान होगा जो उसको सदा सच्चे मानवकी पदवी प्रदान कर सकती है तब उसका निस्तार होगा। समाजवादका सिद्धान्त तभी एक शक्तिके रूपमे परिणत
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