इतिहासकी भौतिक व्याख्या २७६ तैयार करते है, उन्हीके अनुरूप उत्पादन सम्बन्ध बनते है । सक्षेपमें उत्पादक शक्तियोके विकासके अनुरूप उत्पादक सम्बन्ध कायम होते है, उत्पादक सम्बन्धोको जोडकर समाजका आर्थिक ढाँचा बनता है और आर्थिक ढाँचेके आधारपर राजनीतिक और सास्कृतिक ढाँचेकी दीवार खडी होती है । विचारधारामें परिवर्तन समाजके आर्थिक ढाँचेमे परिवर्तन होनेके साथ उसकी मानसिक विचारधारामे किस प्रकार एकदम परिवर्तन हो जाता है इसका एक उदाहरण जिससे इतिहासके विद्यार्थी ज्यादा अच्छी तरह परिचित है, सोलहवीसे उन्नीसवी शताब्दीका यूरोप है । इस समय यूरोपके आर्थिक ढाँचेमे परिवर्तन हुआ अर्थात् सामन्तशाहीका स्थान पूंजीवादने लिया । आर्थिक ढाँचेके इस परिवर्तनके साथ ही हमे यूरोपके समूचे विचारक्षेत्रमे भी क्रान्तिकारी वेगसे परिवर्तन दिखायी पडता है । राजनीतिक क्षेत्रमे सामन्तोका प्रभुत्व जाता रहता है, राजाका दैवी अधिकार ( divine right of king ) अव दन्तकथाकी कल्पनामात्र रह जाता है और राष्ट्रीयता तथा प्रजातन्त्रकी भावनाप्रोका प्रादुर्भाव एवं प्रसार होता है । यदि हम ध्यानपूर्वक इस महान् राजनीतिक परिवर्तनके मूलकी खोज करेगे तो हमे पता चलेगा कि प्रजातन्त्र और राष्ट्रीयताकी भावनाअोका प्रसार इसीलिए हुआ कि उत्पादनकी शक्तियोके विकासके लिए इनकी आवश्यकता थी। सामन्तशाही कालके राजनीतिक ढाँचेमे बृहद् भूखण्ड या राष्ट्र जो भौगोलिक दृष्टिसे एक इकाई ( unit ) कहे जा सकते थे, अनेक छोटे-छोटे प्रादेशिक खण्डोमे वटे हुए थे, जिनपर छोटे-छोटे जागीरदारो या सामन्तोका निरकुश शासन हुआ करता था। व्यापारियोको अपने मालपर एक ही राष्ट्रके भीतर एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशमे जानेके लिए कई वार चुगी अदा करनी पडती थी, जिससे पदार्थोका मूल्य बहुत बढ जाता था। साथ ही इन छोटे प्रदेशोके भीतर जो कच्चा माल, आवागमनके साधन-सडके, पुल, आदि होते ये उनका अपनी इच्छानुसार लाभ व्यापारी-वर्ग न उठा सकता था। अत व्यापारियो- के नये वर्गको यह आवश्यकता पडी कि वह ऐसी राज्य-पद्धति कायम करे जिसमे प्रभुताका विभाजन वशकी मर्यादाके आधारपर न होकर सम्पत्तिके स्वामित्वके आधारपर हो । यद्यपि कहनेको समाजके सभी शोपित वर्गोकी सहानुभूति प्राप्त करनेके लिए पूंजीपतियोने प्रजातन्त्रको जनताकी भलाईके लिए जनताके प्रतिनिधियोका शासन वतलाया, लेकिन हम यह स्पष्टत देख सकते है कि तथाकथित शासन वास्तवमे पूंजीवादी वर्गके प्रतिनिधियो- का शासन है जो कि जनताके हितोको ठुकराकर पूंजीपतियोके वर्गस्वार्थकी रक्षा करता है। मासके शब्दोमे “वर्तमान शासन-तन्त्रको कार्यकारिणी समूचे पूंजीपति वर्गके हितोको देखनेवाली प्रवन्धक समिति ही है ।" अर्थशास्त्रके क्षेत्रमे इसी समय ऐडम 1. The executive of the modern State is but a committee for managing the common affairs of the whole bourgeoisie— "Comm- unist Manifesto".
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