२६६ राष्ट्रीयता और समाजवाद industry ) प्रणालीकी प्रधानता थी, आजकलकी भाँति बडे पैमानेपर पैदावार नही होती थी, उत्पादनके साधनोपर व्यक्तिगत अधिकार हुआ करता था और बहुत हदतक पैदावार करनेवाले व्यक्तिको अपनी पैदावारका लाभ मिलता था। अाज बड़े पैमानेपर पैदावार होती है, पर उत्पादनके साधनोपर समाजका या उनमें काम करनेवाले आदमियोका कोई अधिकार न होकर व्यक्तिगत पूंजीपतियोका अधिकार होता है । फलस्वरूप सारा नफा इन व्यक्तिगत पूंजीपतियोकी ही जेवोंमें जाता है और मजदूरोको मुश्किलसे उनके पेट भरनेके लिए दिया जाता है । पूंजीवादी प्रणालीका नतीजा न सिर्फ समाजके दूसरे लोगोके लिए ही बल्कि पूंजी- पतियोके लिए भी घातक होता है । चूंकि समाजका वहुसख्यक भाग परिश्रम करनेवालोंका है, जिनकी क्रयशक्ति ( purchasing power ) दिन-ब-दिन घटती ही चली जाती है, इसलिए पूंजीपतियोको अपने कारखानेका माल वेचना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जाता है । यो तो किसी योजना ( plan ) के अनुसार पैदावार न होनेके कारण पूंजीवादी आर्थिक प्रणालीमे सकट अाया ही करते थे, लेकिन श्रमिक जनताकी क्रयशक्तिके ह्रासके फलस्वरूप अव इस संकटने स्थायी रूप धारण कर लिया है । इस प्रकार उत्पादनकी शक्तियो और उत्पादनके साधनो तथा उत्पादनकी शक्तियो और विनिमयके वीच घोर असंगतियाँ उपस्थित हो गयी है । समाजवादका उद्देश्य इन्ही असमानताप्रो और असंगतियों- को दूर करना है। अगर कुछ लोग यह समझते हो कि समाजवाद हर प्रकारकी आजादी या समानता कायम करने जा रहा है तो यह उनकी भूल होगी। समाजवाद पूर्ण समानता लानेका दावा नहीं करता । समाजवादी समाजमे भी समाजके सदस्योमे शारीरिक और मानसि अन्तर रहेगे ही । समाजवाद यह अवश्य करेगा कि वह शोपक वर्गका अन्त करके, असमानता का आर्थिक आधार ( economic basis ) नष्ट कर देगा और सवको अवसरकी समानता प्रदान करेगा। सामाजिक वर्गोका अर्थ पहले बताया गया है कि समाजवादका ध्येय वर्गरहित समाजकी स्थापना है । यहाँपर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि वर्ग शब्दसे हमारा अभिप्राय क्या है । वर्गके सम्बन्धमे वहुतसी मिथ्या धारणाएँ प्रचलित है । कुछ लोग यह समझते है कि समाजमें अमीर और गरीव ये दो वर्ग हमेशासे रहते आये है और समाजवादका उद्देश्य इन दोनो समूहोके अन्तरको मिटाकर समाजके सभी सदस्योमे आर्थिक एकरूपता स्थापित करना है। यह ठीक है कि हजारो वर्षांसे यह अमीरो और गरीबोका भेद चला आया है, मगर यह कहना गलत है कि हमेशा ऐसा रहा है और रहेगा । गरीवी कब शुरू हुई, क्यो शुरू हुई यही तो समाजवाद बताता है । इसीमे तो श्रेणी-सघर्पका रहस्य है ।
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