२६४ राष्ट्रीयता और समाजवाद सफल हुई ? इस प्रश्नका उत्तर ठीक-ठीक समझनेके लिए इस बातको अच्छी तरह समझ लेना होगा कि समता और स्वतन्त्रता आदि भावनाअोका अर्थ क्या है ? समता आदि भावनात्रोंको निरपेक्ष ( absolute ) आदर्श, कभी न बदलनेवाला, नही कहा जा सकता । समाज, काल और देश-भेदसे इनके अर्थोमे भी अन्तर हो जाता है । फ्रान्सीसी राज्यक्रान्तिके विचारोंका इन नारोसे क्या अर्थ था, यह समझनेके लिए आवश्यक है कि हम यूरोपके उस समयके सामाजिक संगठनका अध्ययन करे और देखे कि उस समय यूरोपके समाजमे प्रचलित विपमता और दासताका स्वरूप क्या था ? हम देखते है कि फ्रान्सीसी राज्यक्रान्तिके समयके यूरोपमें सामन्तशाहीकी तूती बोलती थी। उस समय समाज छोटे-छोटे भू-भागोमे बँटा हुआ था। समाजके राजनीतिक और आर्थिक जीवन- पर राजाओं, जागीरदारो और महन्तोका प्रभुत्व था। गाँवोकी जनता कृपकदासो ( serfs ) का जीवन व्यतीत करती थी। उत्पादनकी शक्तियोको इस सामन्तवादी आर्थिक व्यवस्थामे अधिक फैलनेकी गुजाइश नही थी। व्यापारियोका वर्ग :प्रभावशाली हो रहा था, लेकिन राजनीतिक शक्ति सामन्तोके हाथमे होने और आर्थिक दृष्टिसे जनसंख्याके प्रादेशिक खण्डोमें बँटे रहनेके कारण व्यापारके मार्गमे वाधा पडती थी। कृषकदासता प्रथा ( serfdom ) के प्रचलनके कारण कृषक जनताके पास इतनी आमदनी नही हो पाती थी कि वह व्यापारियोद्वारा अव अधिक मात्रामे पैदा की जानेवाली वस्तुएँ खरीद सके । साथ ही कृपकदास अपनी जमीनको छोडकर कारखानोमे काम' करने भी नहीं जा सकते थे। ऐसी अवस्थामे व्यापारी पूंजीपति वर्गके लिए यह स्वाभाविक था कि वह एक ऐसी क्रान्तिका नेतृत्व करता जिसके फलस्वरूप सामन्तोकी ताकत खत्म होकर ऐसा प्रजातन्त्र स्थापित होता जिसमें राज्यकी सत्ता पूँजीपतियोके हाथमे आती और व्यापारके फैलावके लिए ग्राजादी हासिल होती । फ्रान्सीसी राज्यक्रान्तिमें सामन्त- वादी समाजकी विपमता और दासता दूर की गयी और इसी अर्थमें हम फ्रान्सीसी राज्य- क्रान्तिकी सफलताकी बात भी करते है । आधुनिक विषमताएँ आज जब हम कहते है कि स्वतन्त्रता, समता आदिके आदर्शोको हमे सिद्ध करना है तो हमारा अर्थ उस अर्थसे भिन्न होता है जो कि फ्रान्सकी राज्यक्रान्तिक नेताग्रोका था । जैसा कि हमने ऊपर देखा, फ्रान्सकी राज्यक्रान्तिका अर्थ उन सामन्तवादी विपमतारोको हटाना था जो पूंजीवादके विकासके मार्गमे वाधक थी। अाज हमारा ध्येय उन विषमताओ और वन्धनोको दूर करना है जो पूंजीवादके प्रसारसे उत्पन्न हुई है और जो आज उत्पादनकी शक्तियोको आगे बढ़नेसे रोक रही है । पूंजीवादी प्रणालीके संसारव्यापी होनेके कारण आज ससारभरमे पूंजीपतियोका वोलवाला हो रहा है। प्राचीन कालके सामन्तोंका स्थान पूंजीपतियोने ले लिया है । राष्ट्र और मंसारकी दौलत मुट्ठीभर पूंजीपतियोके हाथमे आ गयी है । लन्दन शहरके व्यापारी ब्रिटिग साम्राज्यभरकी आर्थिक वागडोर अपने हाथमे रखते है । फ्रासकी
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