२५४ राष्ट्रीयता और समाजवाद . क्रान्तिकारी अधिकार गाँववालोको बालिग मतके आधारपर प्रतिनिधियोको चुननेका अधिकार देकर निस्सन्देह युवतप्रान्तीय सरकारने एक बहुत बडा कदम उठाया है । वालिग मताधिकार एक क्रान्तिकारी अधिकार है, यह प्रजातन्त्रको आधारशिला है, जम्हूरियतका बुनियादी पत्थर है । बिना जाति, सम्प्रदाय या सामाजिक हैसियतका भेद किये, सभी वालिग स्त्री- पुरुपोको एक दर्जा दिये बिना जम्हूरियत, प्रजातन्त्र कायम नही हो सकता । विराट जनजागरण इस क्रान्तिकारी अधिकारको पाकर सदियोसे सतायी और कुचली हुई जनतामे एक नयी ताकत पायी । जो लोग इन्सान नही समझे जाते थे, जमीदारोके सामने चारपाईपर नही बैठ सकते थे और खुलकर अपनी रायका इजहार नही कर सकते थे वे नीच जातिके पुकारे जानेवाले लोग गाँव-सभाप्रोके पंच और सरपच चुने गये । ग्रामीण वर्गसंघर्ष गांव-पंचायतोके चुनावोमे 'ऊँच' और 'नीच' जातियोका संघर्ष वस्तुतः शोषको और शोषितोके बीच चलनेवाले वर्गसंघर्षका रूप है । यह शकल ऐसी नही जिसे मैं पसन्द करूँ, इसमे जो खतरे है उनसे शोषित जनताको आगाह करना होगा। पर गांवोमें वर्गसंघर्ष प्रारम्भमे 'ऊँची' जातियोके विरुद्ध 'नीची' जातियोके विद्रोहका रूप लेगा ही। देशके पिछले इतिहासको भुलाया नही जा सकता । नयी चेतना जगाइये समाजवादियोंको इस संघर्षको सही शकल देनी है । कुचला हुआ मजदूर आर्थिक एकाधिकारका दोष जातिकी ऊँचाईको देता है। वह यह नहीं देख पाता कि शोषक और शोषित 'ऊँची' और 'नीची' दोनो जातियोमे बँटे हुए है, किसीमे वे थोड़े है किसीमें ज्यादा । पुराने जमानेमे कौमियतका उसूल, राष्ट्रीयताका सिद्धान्त नही था। देहातका गरीब विरादरीकी ही परिभाषामे सोचता है । हमे देहातकी शोषित जनताको समझाना है कि जाति, वंश और सम्प्रदायके भेदोंको भूलकर शोषक वर्गोके आर्थिक प्रभुत्वके विरुद्ध वे सयुक्त मोर्चा कायम करे । चूसे जानेवाले मेहनतकशोका बेलिहाज जात-पात और मजहब-मिल्लत एक खेमा वने । अपढ़, पर नासमझ नहीं यह धारणा कि चूंकि किसान अपढ है इसलिए वह गांवका प्रवन्ध नही कर सकता ठीक नही है। किसानने दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीतिकी पोथियां न पढ़ी हों पर वह जिन्दगीकी किताबसे बहुत कुछ सीखता है । अपने हितकी बाते वह बहुत अच्छी तरह समझता है । यही कारण है कि कांग्रेसपरसे उसकी आस्था हट चली है । यही कारण है कि यद्यपि वह हमारी बात ध्यानसे सुनता है, पर हमारे ऊपर पूरा विश्वास करनेसे पहले हमे अच्छी तरह परख लेना चाहता है ।
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