पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५९

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२४४ राष्ट्रीयता और समाजवाद नसीब न हो, किन्तु एक साधारण नागरिक सन्धियोंकी अपेक्षा मकानोकी कही ज्यादा फिकर करता है, यदि उसको यह विश्वास हुआ कि मजदूर-सरकार मकानोकी व्यवस्थाके लिए सब कुछ कर रही है, तभी उसका विश्वास सरकारको प्राप्त हो सकेगा !" इसी प्रकार इंगलैण्डमे कभी-कभी ऐसी हडतालें होती है, जिनसे जनताको बड़ी असुविधा होती है । ये हडताले युनियनके अधिकारियोकी रायसे भी नही होती: इसलिए ये नियम-विरुद्ध है । हड़ताल करानेवालोका यह कहना है कि जो मशीनरी मजदूरीके प्रश्नका निपटारा करानेके लिए बनी है उसकी गति इतनी मन्द है कि वह बर्दाश्तके बाहर है । उनकी यह भी शिकायत है कि युनियनोके अधिकारी प्रवन्ध और व्यवस्थाके काममें डूबे रहते है और अपने उन दिनोके पुराने अनुभवोको भूल गये हैं जब वे स्वयं मजदूरी करते थे। इसका फल यह है कि अब वे मजदूरोकी सच्ची हालतको नही जानते और इस प्रकार सामान्य मजदूरोकी जो शिकायते हैं, उनके साथ उन्होने सहानुभूति खो दी है । इसलिए उनका कहना है कि सारी मशीनरीको एक धक्का लगाना है । उनका कहना ठीक है कि अधिकारियोको सत्याग्रहद्वारा ही सक्रिय बनाया जा सकता है । आवश्यकता इस बात की है कि उद्योग-व्यवसायके सघटन तथा मजदूरोसे समझौता करनेकी मशीनरीमे आमूल परिवर्तन किया जाय न कि हड़ताल करनेवालोको विद्रोही कहकर दण्ड दिया जाय । हमारे देशमे इस समय हड़तालोकी वाढ-सी आ गयी है, किन्तु यह समझना हमारी भूल होगी कि इन सबके पीछे कम्युनिस्टोका हाथ है । मजदूरोकी आर्थिक अवस्था अच्छी नही है । उनको अनेक प्रकारके कष्ट हैं। उनकी युनियनको प्राय. मान्यता नही दी जाती। उनकी शिकायतोको सुनना और ऐसे कानून बनाना जिससे उनके कप्टोका निवारण हो शासकोका कर्तव्य है। प्रत्येक हड़तालसे किसी-न-किसीको कप्ट अवश्य होता है । यह भी ठीक है कि सामानके तैयार होनेमें रुकावट होती है, जिसके कारण जनताका कप्ट और बढ़ जाता है । किन्तु फिर इसका इलाज क्या है ? हड़ताल ही एक ऐसा अस्त्र है जिसके प्रयोगसे मजदूरवर्ग अपने कष्टोका निवारण करता है । ट्रेड युनियन आन्दोलनका आधार ही हड़ताल है । इस अस्त्रको मजदूरोके हायसे छीन लेना उनके साथ अन्याय करना है और उनको बेवश तथा लाचार कर देना है । अपनी सम्मिलित शक्तिसे मजदूरी तय करनेका सिद्धान्त ( collective bargaining ) माना जा चुका है । जब मजदूरोकी उचित मांगोंकी बराबर उपेक्षा की जाती है, तब उनकी प्रार्थनापर ध्यान नही दिया जाता,तब उन बेचारोके लिए हड़तालके सिवा दूसरा उपाय ही क्या है ? जब उनकी सर्वथा उपेक्षा की जाती है तब अधिकारियोका ध्यान आकृष्ट करनेके लिए वे कभी-कभी शान्तिमय प्रदर्शन करते हैं । इसपर वे गिरफ्तार कर लिये जाते हैं और उनसे कहा जाता है कि तबतक वे कामपर वापस न जायँगे जबतक उनकी मांगोपर विचार नही किया जायगा। हम नहीं समझते कि सरकार इन प्रदर्शनोंसे क्यों भयभीत है ? शान्तिमय प्रदर्शन और हडताल करनेका सबको हक है । हम नहीं मान सकते कि अपनी सरकार होनेपर यह अधिकार जाता रहता है । 'लॉ ऍण्ड आर्डर' का हौवा दिखाकर नागरिक स्वतन्त्रताका अपहरण नही किया जा सकता। शान्ति और