२३८ राष्ट्रीयता और समाजवाद हमारे देशवासियोंके साथ समानताका बर्ताव नहीं करता और उनको निम्न और हीन अवस्थामे रखता है । इसके अतिरिक्त पश्चिमी जनतन्त्रोमें ब्रिटेनका प्रमुख स्थान है तथा यह आशा की जाती है कि वह दुनियाकी जनतन्त्रवादी शक्तियोका नेतृत्व करेगा। किन्तु फ्रान्स और हालैण्ड जो कि उसके साथी है, दक्षिण पूर्वी एशियामे अपनी साम्राज्यवादी नीतियोका परित्याग करनेके लिए तैयार नहीं है । कम्युनिज्मके विरुद्ध एक गढके रूपमे पश्चिमी यूरोपका संघ बनाया गया है और इसे अमेरिकाकी प्रवल सहायता प्राप्त है । अग्रेजोने ही वर्मामे उपद्रव खड़ा कर दिया है और वहाँ वे आन्तरिक फूटको प्रोत्साहित कर रहे है । आस्ट्रेलियाके परराष्ट्र-मन्त्रीने असावधानीसे बर्माको पुनः राष्ट्रमण्टलमे सम्मिलित हो जानेकी सलाह भी दे दी है। हिन्दुस्तानका अगोच्छेद करके ही ब्रिटिश सरकारने यहाँ सत्ता हस्तान्तरित की। इन सब बातोसे यही निष्कर्ष निकलता है कि वे एशियाई राष्ट्रोको कभी अखण्ड और शक्तिशाली नही देखना चाहते । इन विभिन्न कारणोसे हमारे लिए राष्ट्रमण्डलमे रहना हितकर नही है । इसका यह अर्थ नहीं है कि हम सास्कृतिक और व्यावसायिक कार्योंके लिए भी ब्रिटेनके साथ मैत्री-सम्बन्ध न स्थापित करे । किन्तु हम यह कदापि स्वीकार नहीं कर सकते कि हिन्दुस्तान ब्रिटेनकी परराष्ट्रनीतिसे बँधा रहे और उसे विनाशकारी युद्धका एक अखाडा बनना पड़े । हमे यह भी नहीं भूलना चाहिये कि ब्रिटेन तथा उसके पश्चिमी मित्र दक्षिण पूर्वी एशियामे जिस नीतिका अनुसरण कर रहे है उससे इन राष्ट्रोमे साम्यवादकी ही शक्ति बढेगी और अगर इस प्रदेशमे साम्यवाद विजयी हुया तो इन राष्ट्रोकी सहायतासे तृतीय गुट निर्माण करनेकी रही-सही आशापर भी पानी फिर जायगा । मैने यह कहा है कि पार्टीके अन्दर भी कुछ त्रुटियां है जिनका सुधार आवश्यक है । सर्वप्रथम, हमारा वर्तमान विधान नवीन परिस्थितियोके लिए सर्वथा अनुपयुक्त है । इसमे परिवर्तनकी आवश्यकता है और पार्टीको एक नये आधारपर पुनस्संघटित करना होगा। अभीतक यह कुछ चुने हुए लोगोकी ही पार्टी है, किन्तु अगर हमे अपना उद्देश्य प्राप्त करना है और सचमुच काग्रेसका प्रतिद्वन्द्वी बनना है तो अपना सघटन व्यापक बनाना पड़ेगा । हमे जनतामे घुसकर उसका विश्वास प्राप्त करना होगा। पार्टीको लोकतान्त्रिक समाजवादका उपकरण बनाना है और इसके लिए बुद्धिजीवी वर्गका सहयोग अपेक्षित है । हमलोगोको महान् निर्माण-कार्य करना है और इसमे पूरी शक्ति और बुद्धि लगाने की अाश्यकता है । हम केवल प्रचारसे सफल होनेकी अाशा नहीं कर सकते । शोषण और विणेप सुविधाओंका अन्त करनेके लिए उत्पादनके साधनोका समाजीकरण करना पडेगा और सार्वजनिक सेवायोको जनसाधारणके हितकी दृप्टिसे सघटित करना है । अनायोजित आर्थिक पद्धतिके स्थानपर नियोजित अर्थनीतिको अपनाना होगा और सबके ऊपर मानवीय सम्बन्धोको इस प्रकार बदल देना पडेगा जिसमे कि जीवन ही लोकतन्त्रात्मक ढंगका वन जाय । इन सव कार्योको सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओपर गम्भीर तथा ठोस अध्ययन अपेक्षित है । पार्टी को न केवल एक सुव्यवस्थित कार्यक्रम ही प्रस्तुत करना है, प्रत्युत उसे असंख्य जनताको यह विश्वास
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।