भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास ११ श्रोहदे भी नही मिलते थे । एक प्रकारसे मुसलमानोकी आर्थिक अवस्था इस समय बहुत हीन हो गयी थी । हिन्दुनोने अंग्रेजी-शिक्षासे पूरा लाभ उठाया और इसलिए सरकारी नौकरियाँ विशेपकर उनको ही मिलती थी। सन् १८२३ मे वहावियोने सिक्खोके खिलाफ जिहादकी घोपणा की थी। इससे अग्रेजोका यह खयाल हुअा कि मुसलमान-धर्म विर्मियोके विरुद्ध जिहाद करनेकी शिक्षा देता है । सय्यद अहमद खाँ सरकारी मुलाजिम रह चुके थे । इन्होने कई पुस्तके लिखकर इस वातके दिखलानेकी कोशिश की कि सिपाही- विद्रोहमे मुसलमानोने हिन्दुप्रोकी अपेक्षा अधिक हिस्सा नही लिया था और उस समय भी बहुतसे मुसलमानोने सरकारकी सहायता की थी। उन्होने यह भी दिखलाया कि इस्लाम विधर्मी राजाग्रोके प्रति भी राजभक्त रहनेकी शिक्षा देता है और जिहाद केवल ऐसे राजाके विरुद्ध ही घोपित किया जा सकता है जिसके राज्यमे मुसलमानोको धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त न हो । उन्होने मुसलमानोको अग्रेजी शिक्षाके लिए प्रोत्साहित किया । अग्नेजोकी भी इस समय यही धारणा हो रही थी कि मुसलमानोके विरोधके परिहारका यदि कोई उपाय है तो यही है कि उनको अग्रेजी शिक्षा प्राप्त करनेके लिए तैयार किया जाय । सैयदअहमद खॉने अलीगढमे 'मोहमडन एग्लो ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जहाँ और विषयोके साथ-साथ इस्लाम धर्मकी शिक्षाका भी प्रवन्ध किया गया था । लार्ड नार्थ ब्रुकने इस सस्थाको दस हजार रुपया दानमे दिया और लार्ड लिटनने सन् १८७७ मे शिलान्यास-सस्कार किया । सैयद अहमद खाँका कहना था कि मुसलमानोको अपनी सारी शक्ति शिक्षाके कार्यमे लगा देनी चाहिये । उनका खयाल था कि जबतक मुसलमान शिक्षित नही हो जाते तवतक वे काग्रेसके आन्दोलनके फलस्वरूप जो अधिकार उनके देशवासियोको प्राप्त होगे उनसे लाभ नही उठा सकेगे। इसके अतिरिक्त कांग्रेसमें सम्मिलित होनेसे सरकार भी मुसलमानोसे नाराज होगी। इन विविध कारणोसे उन्होने मुसलमानोको काग्रेसमे शरीक होनेसे रोका । उस समयके काग्रेसके नेता ब्रिटिश सरकारको नेकनीयतीपर विश्वास रखते थे और उनका यह खयाल था कि ज्यो-ज्यो भारतीय अपनेमे योग्यता प्रतिपादित करते जायेंगे त्यों-त्यो सरकार उनके न्यायोचित अधिकार उनको प्रदान करती जायगी। उनका विश्वास था कि भारतमे अग्रेजोका आगमन इतिहासकी एक आकस्मिक घटना नही है ; बल्कि भारतके कल्याणके लिए ही ईश्वरकी प्रेरणासे इस जातिका यहाँ आगमन हुअा है । ब्रिटिश शासन उनकी दृप्टिमे एक अच्छा शासन था। इसने देशमे शान्ति स्थापित की थी और उनको यह आशा थी कि अग्रेजी शिक्षाके प्रचारसे देशका अन्धकार दूर होगा। वह अपने समाजकी दुर्वलताको अच्छी तरह पहचानते थे। वह देखते थे कि भारतीय अशिक्षित है और उनमे अनेक सामाजिक कुरीतियाँ पायी जाती है । उनका विचार था कि भारतवासी अभी इस योग्य नहीं है कि अपने देशका राज्य-प्रवन्ध स्वय कर सकें। ह्य म महाशयने अपनी इलाहाबादकी वक्तृतामें कहा था कि हमसे यह कहा जाता है कि काग्रेसके लोग शासनकी वागडोर अपने हाथमे लेना चाहते है, पर सच्ची बात यह है कि काग्रेसवाले ही सबसे ज्यादा इस बातको पहचानते है कि भारतीय किसी प्रकार भी शासन .
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।