२१८ राष्ट्रीयता और समाजवाद हम बहुत दिनोंसे जंगलकी काँटोभरी राहपर चलते रहे है । यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आजकी स्थितिमे राजनीति जीवित नहीं रह सकती। इस अप्रिय स्थितिको सुधारनेके लिए क्या वे लोग कुछ करेगे जो ऐसा कर तो सकते है, परन्तु करना नही चाहते ? या उनकी आँखोपर पट्टी बँधी है जो वे बदलती हुई हालतोको नही देख पाते ? अथवा वे चाहते है कि नियति ही अपना निश्चित पथ ग्रहण करे ? सन् ४२ की क्रान्तिका उद्देश्य अभी पूरा नहीं हुआ आज १५ अगस्त है । आप सोचते होगे कि यह दिवस हम और काग्रेसी साथ-साथ क्यों नही मना रहे है । उत्तर स्पष्ट है । अाज हमारा और काग्रेसका रास्ता अलग-अलग है । ब्रिटिश साम्राज्यवादसे लड़नेमे हम सबै साथ थे । किन्तु काग्रेसने ६ अगस्त सन् १९४२ की प्रतिज्ञाको भुला दिया। इस प्रतिज्ञाका महत्त्व बहुत ज्यादा है। इस प्रतिज्ञामें तीन महत्त्वपूर्ण चीजे है-(१) ग्राजादी, (२) किसान-मजदूर राज और (३) विश्व- वन्धुत्व । किन्तु देशके नये वन रहे विधानमे किसान-मजदूरो अथवा मेहनतकशोके हाथमें सना जाने की कोई गुञ्जाइश नही है। राजनीतिक आजादी मिल जानेपर काग्रेसके नेतानोने अपने कामको समाप्त समझ लिया। किन्तु वास्तवमे अभी ४२ का आन्दोलन समाप्त नही हुअा है। राजनीतिक आजादी अवश्य मिल गयी है किन्तु नये समाजका निर्माण और आर्थिक विपमताको समाप्त कर समता स्थापित करना अभी शेप है । श्यकी प्राप्तिके लिए सन् ४२ मे भारतकी जनताने महान् वलिदान किये । कुछ समय बाद यह विद्रोह दव गया मालूम पडा । वास्तवमे विद्रोह दवा नही था, उसपर राख अवश्य पड गयी थी। जनता अवसरकी ताकमे थी। नेतायोके जेलसे छूटनेपर यह स्पष्ट हो गया था । गत १५ अगस्तको हमे जो आजादी मिली वह हमारी शक्तिकी वजहसे ही प्राप्त नही हुई । उसका एक कारण ब्रिटेनकी शक्तिका क्षीण होना भी था। शक्ति क्षीण होनेके कारण इतने बडे साम्राज्यपर काबू बनाये रखना उनके लिए कठिन था। अत. उन्होने अपने स्वार्थोको दृष्टिमे रखकर ही समझौता किया। इस समझौतेमे भी उन्होने हमें दुर्वल बनाया । देशका विभाजनकर राष्ट्रीयताका नाश किया और उसे साम्प्रदायिकताकी भट्टीमे झोक दिया । देश सभी नैतिक मूल्योको भूल गया। वर्तमान युग विज्ञान और विश्ववन्धुत्वका है । इस परिवर्तनशील युगमे हमे नये सामाजिक मूल्य अपनाने होगे । जो देश इन्हे नही अपनायेगा उसका पतन निश्चित है। आज स्थिर स्वार्थवाले और पूंजीपति कांग्रेसपर प्रभुत्व वढानेका उपक्रम कर रहे है । इसमे उन्हें सफलता भी मिल रही है । एशियाई देशोके सम्मेलनके अवसरपर यह १. लखनऊ सोशलिस्टपार्टीके तत्वावधानमे हुई सार्वजनिक सभामे दिये हुए भाषण- का सारांश ।
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