२०८ राष्ट्रीयता और समाजवाद (हर्पध्वनि) । किन्तु चाहे यह संकल्प पूरा हो या नही, हम अपने सिद्धान्तोसे विचलित न होगे। हम जानते है कि हमारे देशका यह युग निर्माणका है, न कि ध्वंसका। अतः हमारी पालोचना सदा इसी उद्देश्यसे होगी। हम व्यक्तिगत आक्षेपोसे सदा वचनेका प्रयत्न करेंगे और हम किसी ऐसे विवादमे न पडेगे । राजनीतिक जीवनको स्वस्थ और नीतिपूर्ण बनानेमे हम अपना हाथ बढाना चाहते है। इन वातोमे महात्माजीका उपदेश हमारा पथ-प्रदर्शन करेगा । हम आपको विश्वास दिलाना चाहते है कि हमने किसी विद्वेप और विरोधके भावसे प्रेरित होकर यह कार्य नही किया है । हममें किसी प्रकारकी कटुता नहीं है । हमारे वहुतसे साथी और सहकर्मी कांग्रेसमे है और उनके साथ हमारा सम्बन्ध मधुर रहेगा । हम जानते है कि उनको भी हमारे अलग होनेसे दुःख पहुँचा है। हमारे समान राजनीतिक आदर्श तथा हमारी समान निप्ठा अव भी हमको एक प्रकारसे उनसे एक सूत्र में बांधे रहेगी। माननीय अध्यक्ष महोदय, आप एक कुटुम्बके सम्मानित सदस्य होते हुए भी इस भवनके अन्य कुटुम्बोके अधिकारोकी भी रक्षा करते है । अतः हम आपसे आशा करते है कि आप हमको आशीर्वाद देगे कि हम अपने उद्देश्योकी पूर्तिमे सफलता प्राप्त करें। हम आपके प्रति तथा काग्रेस असेम्बली पार्टीके नेता माननीय पं० गोविन्दवल्लभ पन्तके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करते है। हमने कांग्रेस क्यों छोड़ी? कांग्रेसकी स्थापना देशको स्वतन्त्र करनेके लिए हुई थी। इस लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए एक ऐसी राष्ट्रीय सस्थाकी जरूरत थी जो आजादी पानेके लिए विविध वर्गो और विचारधाराग्रोका एक सयुक्त मोर्चा बन सके । विना देशके स्वतन्त्र हुए कोई भी अर्थनीति सफल नहीं हो सकती थी। राजनीतिक स्वतन्त्रता पाना सवका समान ध्येय था । काग्रेस इस प्रकारका संयुक्त मोर्चा थी। इसी कारण यद्यपि समाजवादी पार्टीका जन्म सन् १९३४ ई० मे हुआ, पार्टीने कांग्रेसमे रहकर संयुक्त मोर्चेको मजबूत किया। समाजवादी पार्टीके भीतर रहनेकी वजहसे काग्रेस आर्थिक कार्यक्रमको महत्व देने लगी। पण्डित जवाहरलाल नेहरूने भी काग्रेसके प्लेटफार्मसे समाजवादका प्रचार किया। फैजपुर-काग्रेसमे किसानों- की समस्याओकी ओर अधिक ध्यान दिया गया और फलस्वरूप असेम्बलीके सन् १९३७ के चुनावमे किसानोने कांग्रेसका साथ देकर कांग्रेस-पार्टीको सफल बनाया और उसकी गवर्नमेण्ट कई प्रान्तोमे कायम की। किसानोके प्रभावमे कांग्रेसको धीरे-धीरे जमीदारी प्रथाका अन्त करनेके लिए वाध्य होना पडा । काग्रेसने आजादीके लिए जो सत्याग्रहकी लड़ाइयाँ लड़ी उसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस धीरे-धीरे जनताकी सस्था होने लगी और जनताके प्रभावमे उसे अधिकाधिक जनताकी मांगोको स्वीकार करना पड़ा । यहाँतक कि सन् १९४२ मे अपने ८ अगस्तके प्रस्तावमे काग्रेसको यह स्वीकार करना पड़ा कि वह
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