भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास 8 और एक गश्ती चिट्ठी इस आशयकी घुमायी कि इण्डियन नेशनल युनियनकी कान्फ- रेन्स सन् १८८५के दिसम्बरमे पूनेमे होगी तथा सव प्रान्तोके अंग्रेजी पढ़े राजनीतिज्ञ प्रतिनिधि-रूपसे इस कान्फरेन्समे सम्मिलित हो सकेगे। यह कान्फरेन्स दो उद्देश्योको दृष्टिमे रखकर बुलायी गयी थी। पहला उद्देश्य भिन्न-भिन्न प्रान्तोके कार्यकर्तामोमें परिचय करानेका था । दूसरा उद्देश्य यह था कि अगले वर्षका राजनीतिक कार्य-क्रम स्थिर किया जाय । ा म साहव काग्रेसके पिता कहे जाते है । ये पहले इण्डियन सिविल सविसके एक सदस्य थे । इन्होने सिपाही-विद्रोहका जमाना देखा था । वार-बार अकाल पड़नेसे और अफगान-युद्धके कारण जनतामे अशान्ति बढ रही थी। उस समय रूस एशियामे इङ्गलैण्डका एक जवर्दस्त प्रतिपक्षी समझा जाता था। द्वितीय अफगान युद्धके, छिड़नेपर बाज़ारोमे तरह-तरहकी अफवाहे फैलने लगी। लोग जावजा कहने लगे कि रूस भारतवर्षपर आक्रमण करेगा । वे रूसको इतना शक्तिशाली समझते थे कि यदि इङ्गलैण्ड और रूसके बीच कोई युद्ध छिड़ा तो उसमे रूस इङ्गलैण्डको हरा देगा । ह्य म साहब साधुअोसे अक्सर मिला करते थे और उनको इस बातका पता चला कि लोगोकी अशान्ति वढ़ रही है और उनको इसकी आशंका हुई कि कही सिपाही-विद्रोहकी पुनरावृत्ति न हो जाय । इसलिए उन्होने इस बातकी आवश्यकता समझी कि कुछ ऐसा प्रबन्ध होना चाहिये जिससे सरकारको जनताके हृद्गत भावोका पता चलता रहे और जनताकी अशान्ति विद्रोहका रूप न धारण कर वैध आन्दोलनका रूप धारण करे । इस कार्यके लिए उन्होने अग्रेजी शिक्षित वर्गको उपयुक्त समझा ; क्योकि वे समझते थे कि अग्रेजी शिक्षितवर्ग ही एक ऐसी शृङ्खला है जो इङ्गलैण्ड और भारतके सम्बन्धको सुदृढ कर सकती है और वे यह भी जानते थे कि विदेशी शासक और अपढ जनताके बीच दुभापियेका काम भी यही वर्ग कर सकता है । सन् १८८८ मे इलाहाबादकी काग्रेसके अवसरपर ा म महाशयने एक वक्तृतामे यह कहा था कि काग्रेसका एक उद्देश्य यह भी है कि लोगोंकी मनोवृत्तिको इस प्रकार बदल दे जिसमे वह वाद-विवाद द्वारा पार्लमेण्टकी शैलीके अनुसार अपने देशका प्रवन्ध करना सीखे । इससे स्पष्ट है कि ा म साहबने काग्रेसकी स्थापनाको इङ्गलैण्डके स्वार्थके लिए ही आवश्यक समझा था। उनका यह खयाल बहुत ठीक था । अग्रेजी- शिक्षाके प्रभावकी चर्चा करते हुए ट्रैविलियन अपनी पुस्तकमे लिखता है-'संयुक्तप्रान्त और बगालके ऊँची श्रेणीके लोगोके राजनीतिक विचारोमे मैंने एक बडा भारी अन्तर पाया है । संयुक्तप्रान्तमे, जहाँ अग्रेजी-शिक्षाका अभी प्रारम्भ ही हुआ है, लोग केवल एक ही प्रकारसे अर्थात् अग्रेजोंको निकालनेसे ही अपनी राजनीतिक अवस्थाका सुधार सम्भव समझते है । इसके विपरीत वंगालमे, जहाँ अग्रेजी-शिक्षाका काफी प्रसार हो चुका है, लोग किसी-न-किसी रूपकी प्रतिनिधि-सत्तात्मक शासन-प्रणालीको ही अपना आदर्श समझते है । इसमे सन्देह नही कि दोनो प्रकारसे अग्रेजी राज्यका अन्त होना निश्चित है । लेकिन दोनो प्रकारोमे यह एक वडा अन्तर है कि जहाँ एक प्रकारमे हमारी सरकारका तत्काल ही अन्त करना अभीष्ट है वहाँ दूसरे प्रकारमे इस वातको स्वीकार कर लिया जाता है कि बहुत दिनोतक हमारे शासनकी आवश्यकता बनी रहेगी और ज्यो-ज्यो
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।