राष्ट्रीयता और समाजवाद था, तब उसका भी एक स्वरसे विरोध किया गया । 'इण्डियन एसोसियेशन'ने इस सम्बन्धमे पार्लमेण्टको एक प्रार्थना-पत्र दिया था जिसको ग्लैडस्टनने पार्लमेंटमे पेश किया । पार्लमेण्टमे इस सम्बन्धमें वाद-विवाद हुआ, परन्तु ग्लैडस्टनका प्रस्ताव स्वीकृत नही हुआ । अफगान युद्धके सम्बन्धमे लिटनकी नीतिकी इङ्गलैण्डमें बहुत टीका-टिप्पणी हुई । इस प्रकार इङ्गलैण्डनिवासियोने भारतीय प्रश्नोमे दिलचस्पी लेना शुरू किया । भारत-सम्बन्धी तरह-तरहके प्रश्नोपर पार्लमेण्टमें वाद-विवाद होने लगा । ग्लैडस्टनने, जो कि लिवरल दलका नेता था, भारतीयोंका पक्ष लिया। लिवरल दल पायलँण्डके साथ सहानुभूति रखता था और उसकी सहायतासे ही पायलँण्डके कई कानून रद्द किये गये थे। इससे भारतीयोको यह आशा हो चली थी कि लिवरल दल भारतीयोंकी सहायता करेगा और जव इङ्गलैण्डके शासनकी बाग-डोर उसके हाथमें आयगी तो भारतके साथ न्याय किया जायगा । सन् १८८० मे जब लिवरल मंत्रिमण्डल शासनारूढ हुआ, तव भारतीयोने सन्तोष प्रकट किया। प्रारम्भमे भारतीय नेता कंजर्वेटिव और लिवरल दलमे कोई विवेक नही करते थे। वे इङ्गलैण्डके सव दलोसे समान रूपसे सहायता प्राप्त करनेकी चेष्टा करते थे। लेकिन जब उन्होने यह देखा कि लिबरल दल कंजर्वेटिव दलकी अपेक्षा अधिक उदार है और आयर्लंण्डके साथ न्याय करना चाहता है तो उनको लिवरल दलसे सहानुभूति प्राप्त करनेकी अधिक आशा बँधी । जिस प्रकार बगालमे आनन्दमोहन बोस और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी प्रधान कार्यकर्ता थे उसी प्रकार बम्बई प्रान्तमे फिरोज शाह मेहता, काशीनाथ तैलङ्ग, बदरुद्दीन तैयवजी, चन्दावरकर और वाचा आदि सज्जन प्रमुख कार्यकर्ता थे। श्री दादाभाई नौरोजी इनके नेता थे । दादाभाई नौरोजीके उद्योगसे इङ्गलैण्डमे 'ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन' नामकी संस्था सन् १८६७ ईसवीमे कायम की गयी थी। उसी समय उन्होने वहाँ 'लन्दन इण्डिया सोसाइटी के नामसे एक संस्था खोली। विद्यार्थी-अवस्थामे फिरोज शाह मेहता इस सस्थामे सम्मिलित हुए थे। इस समय हिन्दुस्तानकी गरीबीका प्रश्न एक विकट रूप धारण कर रहा था । भारतवर्षमे इस समय वार-बार अकाल पड़ते थे । सन् १८६८-६९ मे राजपूतानेमे, १८७३-७४ मे बङ्गाल और बिहार प्रान्तमे, १८७६ से ७८ तक मद्रास और बम्बई प्रान्तमे अकाल पड़े। कई जगह किसानोके वलवे भी हो गये । इसलिए देशके नेतागोका ध्यान भारतकी गरीवीके प्रश्नकी ओर आकृष्ट हुआ। दादाभाई नौरोजीने इस गरीवीके कारणोका अध्ययन किया और ग्रन्थ एवम् लेख लिखकर शिक्षित जनताका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया। हम ऊपर कह चुके है कि सन् १८८५ मे ह्य मके उद्योगसे काग्रेसकी स्थापना हुई थी। सन् १८८४ के दिसम्बर मासमे अडयार (मद्रास)मे थियासोफिकल सोसाइटीका वार्षिक अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशनमे भिन्न-भिन्न प्रान्तोके प्रतिनिधि तथा थियासोफिकल सोसाइटीसे सहानुभूति रखनेवाले मित्र एकत्रित हुए थे। इनमे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, काशीनाथ त्यम्वक तैलग और दादाभाई नौरोजीके नाम विशेषरूपसे उल्लेखनीय है । इन लोगोंने देशके सुधारके लिए एक राजनीतिक सस्था स्थापित करनेका विचार निश्चित किया
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