. १६४ राष्ट्रीयता और समाजवाद आवश्यकता पड़ेगी, ऐसी कोई बात नहीं है । जिस समय माक्सने इसकी चर्चा की थी, उस समय स्थिति मर्वया भिन्न थी। आज भी मवंत्र एक ही स्थिति नहीं है। यदि प्रजातान्त्रिक क्रान्ति किमान-मजदूरके नेतृत्वमे हुई तो बहुत सम्भव है कि अधिनायकत्वकी स्थापनाका प्रश्न न उठे। समें मजदूर वर्गका अधिनायकत्व न होकर कम्युनिस्ट पार्टीका अधिनायकत्व है तथा वह धीरे-धीरे स्थायी होता जाता है। यदि हममे वर्गविहीन समाजकी स्थापना हो चुकी है जैसा कि कहा जाता है तब अधिनायकत्वकी क्या आवश्यकता रह गयी है ? अनुभव बताता है कि प्रभुताके मदसे उन्मत्त व्यक्ति और सस्थाएं अपने अधिकारको स्थिर बनानेका प्रयत्न करती हैं। इसलिए इसकी आवश्यकता आ पड़े तो इस अधिकारको जितने कम समयके लिए वरता जाय, उतना ही अच्छा है और अधिकारको प्रयोग करने- वालोंकी संख्या जितनी बड़ी हो सके, उतना अच्छा है। श्रेणीसजग किसान और मजदूरोंके नेतृत्वमें की गयी जन-तान्त्रिक क्रान्तिको इसकी कदाचित् अावश्यकता न होगी। मैं नहीं समझ पाता कि इस मवालको लेकर इतना वाद-विवाद क्यों है ? मार्क्सने स्वयं यह नहीं कहा है कि इस मंजिलसे गुजरना सर्वत्र अनिवार्य है । आज तो इसकी अनिवार्यता और भी कम होती जाती है। यूरोपके कई देशोंमें एक दलकी गवर्नमेण्ट नहीं बन पायी है। वहाँ समाजवाद और कम्युनिज्मका झगड़ा सर्वत्र चल रहा है। दोनोंका एक संगठनमें मिल जाना कठिन है। यदि दो दल एक कार्यक्रमपर एक मत हो जायें तो कई देगोमे जनतान्त्रिक ढंगसे धीरे-धीरे समाजवादकी स्थापना हो सकती है। दुख इसीका है कि वामपक्षमें कही भी एका नहीं हो पाता। कहना ही पड़ता है कि कम्युनिस्टोकी नीति इसके लिए जिम्मेदार है। अतः हम जनतान्त्रिक समाजवादके पक्षपाती है। उत्पत्तिके साधनोंको समाजके अधीन करनेसे अधिकारिवर्ग ( Bureucracy ) का प्रभुत्व बढ़ जाता है । इसकी रोक- थाम करनी होगी। इसके लिए ऐसे नियम काममे लाने होंगे जिनसे जनताका उनपर नियन्त्रण रहे । उद्योग व्यवसायके प्रवन्धमे राज्यके अतिरिक्त मजदूरोका काफी हाथ होना चाहिये । स्वायत्त-शासनकी संस्थानोद्वारा भी कुछ व्यवसायोका सचालन हो सकता है । समाजमे रंग, जाति और वर्णका भेद मिटा देना चाहिये । प्रत्येक व्यक्तिको उन्नतिका पूरा अवसर मिलना चाहिये । समाजवादी राष्ट्रको साम्राज्यवादका विरोधी होना चाहिये; आर्थिक तथा राजनीतिक समानताकी प्रतिप्ठा होनी चाहिये । किन्तु जबतक हम जनतान्त्रिक समाजवादकी स्थापना नहीं कर पाते तवतक हमारी क्या नीति हो ? पार्टीने विधानपरिपद्म जानेका विरोध किया है, इसीलिए कि वह सर्वाधिकार प्राप्त संस्था नहीं है। इन परिपका भविष्य अनिश्चित-सा है। यदि इमने कोई विधान प्रस्तुत किया और वह प्रयोगमे आया तव अपनी नीतिको और स्पष्ट रूपसे निश्चित करनेका समय हमारे लिए आयेगा। किन्तु यह निर्विवादह कि उस समयसे ही समाजवादी क्रान्तिका युग शुरु होगा जिसे पूंजीवादी जनतान्त्रिक क्रान्तिका बचा हुआ काम भी पूरा करना होगा । उस समय दलोका नये अाधारपर निर्माण होगा। प्राजकी
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