राष्ट्रीयता और समाजवाद जो तरीके अख्तियार किये गये उसकी चर्चा नहीं की जाती। रूसको तो जाने दीजिये। वहाँ तो मजदूर-किसान राज चल रहा है मगर चीनमे १९३७ मे जो प्रयत्न किसानोको सन्तुष्ट करने के लिए किये गये उनकी ओर हमे ध्यान देना चाहिये । यह उसका नतीजा है कि आज चीनी जनता प्राणपणसे अपने देशके लिए लड रही है और बिना अच्छी तैयारीके आज पाँच वर्ष हुए जापान ऐसे सुसज्जित शत्रुका सामना कर रही है । जापानके हमलेके पहले चीनके किसानोकी बड़ी बुरी अवस्था थी। हिन्दुस्तानके किसानोकी ही तरह वे जमीदारो, महाजनो तथा साहूकारोंकी गैरवाजिव वमूलियावियों तथा ज्यादतियोसे परेशान थे । सन् १९२६ से लेकर सन् १९३७ तक वरावर किसानोकी ओरसे माँगें पेश की गयी और कुप्रोमिंटाग (चीनकी राष्ट्रीय पार्टी) ने उनके लिए नये कार्यक्रम बनाये जिनमे २५ सैकडे लगान घटानेका फैसला किया गया था। सन् १९३७ मे उसने किसानोंको जमीनमे मिल्कियत दिलाने और अधिकसे अधिक लगानकी दर तय करनेका प्रस्ताव स्वीकार किया । मगर जमीदारोकी ताकतके मुकावले यह पूरा कार्यक्रम काममे नही आ सका। फिर भी जो सुधार कर दिये गये उनसे किसानोको थोडा सन्तोष हुआ और वे अपनी सरकारके लिए हिम्मतसे लड रहे है । यह तो भीतरी चीनकी बात है । मगर जो सूवे जापानके कब्जेमे चले गये हिस्सोके पास है वहाँ तो लगानमे २५ सैकड़े कमी करके, सूद ज्यादासे ज्यादा १० सैकड़े तय करके जमीदारो और महाजनोसे किसानोंकी रक्षा की गयी। जो जमीने दो सालसे वेकार पडी थी उन्हें सहयोग कृपिके तरीकेसे काममे लानेके लिए किसानोको दे दिया गया । ऐसी जमीनोमे, खेती करनेके बाद, किसानोको मिल्कियत हासिल हो जाती है । इन सूवोकी हूकूमतोने खेतीके सामान सिचाई वगैरहका इन्तजाम भी किसानोके लिए कर दिया है । जमीदारशाहीकी मनमानी खतम करनेकी पूरी कोशिश हुकूमतकी ओरसे की गयी है, जिसका नतीजा यह हुआ कि सन् १९३८ मे खेतीसे पैदावार ७० सैकड़े बढ़ गयी। दूसरी फसल और भी ज्यादा हुई । जो वात वर्षोंसे नही हो पाती थी वह लडाईके कारण तेजीसे ही गयी। इसीका नतीजा यह है कि आज चीनकी जनता इस हिम्मत और दिलेरीके साथ अपनी आजादीके दुश्मनोका मुकावला कर रही है । यही तरीका आजादी हासिल करने तथा उसे कायम रखनेका है। कमसे कम लड़ाईके जमानेमे तो देशकी जनताके खिलाफ की जानेवाली काररवाइयाँ बन्द होनी चाहिये । इसे वन्द करवाना तो लड़ाई चलानेवालोके लिए भी जरूरी है। इससे बढकर युद्धविरोधी वात तो और कोई हो ही नही सकती। युद्धसम्बन्धी जो समस्याएँ उत्पन्न हो रही है और होगी उन्हे हल करनेके लिए भी जनताको परेशान करनेवाली चीजे बन्द होनी चाहिये । विशेषकर खाद्य-सामग्री उत्पन्न करनेका काम तो इसके बिना जोर नही पकड सकता । स्वतन्त्रता तथा समाजवादसे ही उद्धार होगा हमारी प्राजकी जितनी भी दूसरी समस्याएँ है, जैसे कि आन्तरिक शान्तिका प्रश्न आदि, इनका हल भी इसीपर निर्भर है कि हमारे देशकी जनताका हौसला बढे, वे इस
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