युद्ध और जनता १७५ सहयोग करें तभी स्वभाग्य-निर्णयका सिद्धान्त सार्थक हो सकता है। पर यह पूंजीवादके युगमे सम्भव नही। हिटलरकी नयी व्यवस्था ( New order ) यूरोपके लिए है और जापानकी सम्मिलित समृद्धिको योजना ( Co-prosperityProgramme ) पूर्वी एशियाके लिए है। एशियामें जो अद्भुत जागृति हुई है और राष्ट्रीय भावका उत्थान हुआ है उसीको देखकर यह योजना बनायी गयी है । इस युगमे जापान एशियावासियोको अरसेके लिए गुलाम नही बना सकता । इंगलैण्डने जिस तरह अपना साम्राज्य स्थापित किया उस तरह जापान आज नही कर सकता । जनताकी स्वतन्त्रताकी प्रवल भावनाकी उपेक्षा नही की जा सकती। इसीलिए जापानको मीठी चूंट पिलानेके लिए विवश होना पड़ता है । वह ऐसा जाहिर करता है मानो पूर्वी एशियासे यूरोपकी सत्ता मिटाना उसका एकमात्र उद्देश्य है । वहुतसे इस मिथ्या प्रचारमे फँस जाते है । यूरोपीय साम्राज्यवादसे एशियाके लोग तग आ गये है । इसीलिए यह प्रचार काम कर जाता है । चूंकि पूर्वी एशियाके देश कमजोर है इसलिए जापान उनकी रक्षाका वचन देता है और सवको अपने कुटुम्वोमे शामिल होनेके लिए निमन्त्रित करता है । वह इस कुटुम्बका 'कर्ता' (हिन्दू कुटुम्वका प्रमुख कर्ता कहलाता है) बनना चाहता है । वह कहता है कि जब हम सब एक कुटुम्बके सदस्य हो गये तो हरएक राष्ट्रको हर वातके लिए स्वतन्त्र व्यवस्था करनेकी क्या जरूरत बाकी रह जाती है ? जापानके पास वडी सेना है और लोहे आदिके आधारभूत कल- कारखाने है । प्रत्येक राष्ट्र इनका उपयोग अपने लाभके लिए कर सकता है। प्रत्येक राष्ट्र अपने अन्न-वस्त्र और आन्तरिक रक्षाका प्रवन्ध स्वय कर ले और शेप की व्यवस्था जापानमे पहलेसे ही मौजूद है । जापान इस प्रकार पूर्वी एशियाके राष्ट्रोको देशी राज 'Home Rule' मात्र देना चाहता है जैसा इंगलैण्डने मिस्र, फिलिस्तीन, ईराक आदिको दे रखा है । हमको यह भी न भूलना चाहिये कि वह एक सवल राष्ट्र बननेके लिए कुछ प्रदेशोपर अपना प्रत्यक्ष अधिकार भी चाहता है। यदि आप खुशी-खुशी उसकी योजनाको नही स्वीकार करते तो वह आपके ही देशके कुछ लोगोको फोड़कर एक नकली स्वदेशी हुकूमत कायम करेगा। मचूरिया और चीनमे उसने ऐसा ही किया है । मित्रराष्ट्र तथा धुरीराष्ट्रोकी नयी व्यवस्थाकी यह हकीकत है । इन सबसे जनताका कल्याण नही होनेका है और न कोई समस्या ही हल हो सकती है। समाजवाद एकमात्र उपाय है जवतक पूंजीवाद और उसकी विशेष अवस्थाएँ, साम्राज्यवाद और फासिस्टवादका लोप नही होता तवतक ससारमे शान्ति स्थापित नही हो सकती । जहाँ हिटलरकी नयी व्यवस्था और जापानकी सम्मिलित समृद्धिकी योजना किसी प्रकार आर्थिक अनिश्चितता- को तत्काल दूर करनेमे समर्थ हो सकती है वहाँ वे मनुप्यकी स्वतन्त्रताकी भूखको नही मिटाती । जहाँ मित्रराष्ट्रोकी योजना यूरोपके आक्रान्त देशोकी स्वतन्त्रताको स्वीकार करती है वहाँ उनकी आर्थिक अनिश्चितताको दूर नही कर पाती तथा अपने अधीन
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