युद्ध और जनता १६७ संगठित करे । ऐसा करके ही हम जनताके विश्वासभाजन बनकर वह शक्ति प्राप्त कर सकते है जिसके बलपर गांधीजीके नेतृत्वमे युद्ध आरम्भ होनेपर हम उसपर अपना प्रभाव डाल सकेगे और यदि गाधीजी युद्ध न छेड़े तो हम स्वतन्त्र रूपसे कोई काररवाई कर सकेगे। युद्ध और जनता यह युद्ध आरम्भमे कम्युनिस्टोके लिए साम्राज्यवादी था। जब जर्मनी-रूसका समझौता हो गया तो और जोर-शोरसे साम्राज्यवादी हो गया । इङ्गलैण्ड और फ्रांसका साम्राज्यवाद जर्मनीके नाजीवादसे भी ज्यादा बदतर करार दिया गया। हिटलरको शान्तिप्रिय और इङ्गलैण्डको सारी खुराफातकी जड़ बतलाया गया। जब जर्मनीने रूसपर आक्रमण किया तव इनका यही विचार था कि चचिलने हिटलरको बरगलाकर रूसके विरुद्ध कर दिया है । अर्थात् अनाक्रमण सन्धिके कारण यह हिटलरको देवतास्वरूप समझने लगे थे और इनका ख्याल था कि जर्मनीको रूससे लडानेमे इङ्गलैण्डकी शरारत होगी । इस सिधाई और भोली समझकी क्या दाद दी जाय । । लुत्फ तो यह है कि इसी समझके वलपर हमारे दोस्त अकेले दुनियामे क्रान्ति करना चाहते है । इस युद्धके वाद भी ५ महीनेतक बरावर यह युद्धको साम्राज्यवादी बताते रहे । रूसके युद्धमे सम्मिलित होने से भी इनकी रायमे पहली दिसम्बर सन् १९४१ के पहले युद्धका स्वरूप जरा भी नहीं बदला था। स्टालिनके तीसरी जुलाईके भापणने, जिसमे उन्होने कहा था कि हमारे देणकी स्वतन्त्रताकी लड़ाई यूरोप और अमेरिकाकी जनताकी लड़ाईमें मिलकर एक हो जायगी और यह स्वतन्त्रताके लिए जनताका एक संयुक्त मोर्चा होगा, भारतीय कम्युनिस्टोको भी प्रभावित किया था । लेकिन चूंकि उसमे भविष्यकालका प्रयोग हुआ था इस कारण हमारे दोस्त यह न समझ पाये कि एग्लो सोवियत और सोवियत अमेरिकन समझौतेने भविष्यको वर्तमानकालका रूप दे दिया है और यह जनताका संयुक्त मोर्चा इस समझौताके वाद वास्तवमे तैयार हो गया है। इसके बाद स्टालिनका ऐसा कोई भापण न हुआ जिसमे उन्होने स्पष्ट शब्दोमे इस सयुक्त मोर्चेके तैयार हो जानेका निर्देश किया हो । हाँ, इस घटनासे जेलमे नजरबन्द कुछ कम्युनिस्ट अवश्य प्रभावित हुए थे और उन्होने अपने मित्रोको वाहर कहला भेजा कि सोवियत-यूनियनके लडाईमे आ जानेसे युद्धके स्वरूपमे बुनियादी तवदीली हो गयी है । इसलिए कम्युनिस्ट पार्टीको अपनी नीति बदलनी चाहिये । इसपर कम्युनिस्ट पार्टीने इनके तर्कोका खण्डन करते हुए फिर इसी सिद्धान्तको प्रतिपादित किया कि युद्ध अव भी साम्राज्यवादी है । १. अखिल भारतीय किसान सम्मेलन (विदौल, मुजफ्फरपुर) मे अध्यक्षपदसे दिया हुआ भाषण ।
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