१६० राष्ट्रीयता और समाजवाद भाग लेनेके वजाय उनका विरोध करते रहे । सन् १९२८ के बाद कम्युनिस्ट पार्टी बहुत ही कमजोर हो गयी और अपनी संकुचित नीतिके कारण जनान्दोलनसे बहुत कुछ अलग हो गयी। ट्रेड यूनियन काग्रेसमें भी दो दल हो गये और कम्युनिस्टोने अपनी 'लाल' यूनियनें अलग बनायी । सन् १९३४ में पार्टीकी नीतिका स्पप्टीकरण करनेके लिए एक मसविदा तैयार किया गया और इसीके आधारपर पार्टीका संगठन शुरू हुआ । पार्टीने मजदूर, किसान और शोपित मध्यम श्रेणीका एक साम्राज्यविरोधी संयुक्त मोर्चा बनानेका निश्चय किया। उसके लिए उन्होने एक स्वतन्त्र संस्थाका निर्माण आवश्यक समझा जिसका अपना प्रोग्राम हो। इस सम्बन्धमें अपनी 'थीसिस' (फरवरी, ३४) मे उन्होने लिखा कि “आज कम्युनिस्ट पार्टीके सामने सबसे जरूरी काम एक ऐसी संस्थाका निर्माण करना है जो साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए समस्त शोपित वर्गके संयुक्त मोर्चेकी अभिव्यक्ति हो । कम्युनिस्ट पार्टीके प्रभावमें तैयार किये हुए क्रान्तिकारी कार्यकर्ता इस मोर्चेके मूलाधार होगे और क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन किसान-सभाएँ और युवक-सघके क्रान्तिकारी अंशोके सामूहिक सम्बन्धके आधारपर यह संस्था बनायी जायगी। इसे हम ( Anti-Imperialist League ) अर्थात् “साम्राज्यविरोधी लीग" कह सकते है । सव शोपित वर्गोकी माँगे इसके प्रोग्राममे शामिल की जायेंगी और राष्ट्रीय स्वतन्त्रता, मजदूर और किसान राज्य.आदि इसके नारे होगे । यह एक सर्वसाधारणकी सस्था होगी जिसमें सभी शोपित वर्गके लोग सम्मिलित होगे । इस लीगकी स्वतन्त्र सत्ता होगी। यह कांग्रेससे केवल स्वतन्त्र ही नही होगी, किन्तु उसकी विरोधी होगी। लीगको निरन्तर सुधारवादी नेताओं और संस्थानोंकी आलोचना करनी चाहिये और श्रमिकोके सामने उसके वास्तविक चरित्न ( role ) का उद्घाटन करना चाहिये । साथ ही साथ इसे अपने झण्डे और नारोके साथ काग्रेसके प्रदर्शनमें भी भाग लेना चाहिये । निम्न मध्यम श्रेणीके सगठनोमे उदाहरणके लिए युवक-सघोमे, सुधारवादी किसान-सघोमे इसे अपनी टुकड़ियाँ इस गरजसे भेजनी चाहिये ताकि ये सगठन लीगमे दाखिल हो जायें । श्रमिक जनतासे सुधारवादीसंगठन और नेतृत्वको अलग करनेके लिए यह निहायत जरूरी है कि कम्युनिस्ट संयुक्त मोर्चेमें अपने नेतृत्वको कार्यरूपमे सिद्ध कर दिखावें ।" इस उद्धरणसे यह स्पष्ट हो जायगा कि सन् ३४ मे कम्युनिस्ट कांग्रेसको संयुक्त मोर्चेसे वाहर ही नहीं रखते थे, किन्तु संयुक्त मोर्चेकी एक संस्था उसके विरोधमे खड़ा करना चाहते थे । इसका कारण यही था कि वह काग्रेसको एक सुधार-वादी संस्था समझते थे। कांग्रेस समाजवादियोंकी निन सन् १९३४ मे जब काग्रेस समाजवादी पार्टीका जन्म हुआ तब उन्होने इसे left reformism अर्थात् वामपक्षीय सुधारवादका लकव दिया। उनके मतसे कांग्रेसमे पूंजीवादी विचारधाराका ही प्रधान्य था और गांधीवाद और 'काग्रेस समाजवाद' एक ही विचारधाराके दो पक्ष थे। उनके अनुसार कांग्रेस समाजवादी पार्टी जनताके विद्रोहका
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