१४० राष्ट्रीयता और समाजवाद समताका आधार यदि हमे सुदृढ राजकी स्थापना करनी है तो हमें समाजको समताके अाधारपर संघटित करना होगा । यदि प्रभुशक्ति सर्वसाधारणमे निहित होती है तो हमें सर्वसाधारण- को शक्तिमान बनाना होगा, शृंखलाकी जो भी कडी निर्वल दिखायी दे उसमें शक्ति भरनी होगी। एक जबर्दस्त सामाजिक उलट-फेरके द्वारा ही सामाजिक सौहार्दकी स्थापना हो सकती है। बिना सामाजिक सौहार्द के सुदृढ राज्यका निर्माण नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवश हमारे नेता धारा-सभाअोसे वाहर लोकतन्त्रके व्यवहारपर जोर देनेकी आवश्यकता अनुभव नही करते । जिनके हाथमे देशका संचालन-सूत्र है वे पुलिस, फौज और नौकरशाही- के सदस्योपर ही भरोसा कर रहे है । यदि राष्ट्र-निर्माणके कार्यको आगे बढाने के लिए गैर-सरकारी संस्थानोसे काम लेनेकी बात उनके सामने रखी जाती है तो ऐसे मुझावोंके प्रति वे कोई उत्साह नही दिखाते । यह बात समझ लेनेकी है कि भारतीय संघका मार्ग फूलोसे भरा हुअा नही होगा। समय आ गया है कि हम इस उक्तिके सत्यको हृदयंगम कर ले कि सतत जागरूकता ही स्वतन्त्रताका मूल्य होती है । आनेवाले समयमे वाह्य और आन्तरिक समस्या दोनोपर ही पूरा ध्यान देना होगा। सघके भीतर विच्छिन्नकारी शक्तियोका नियन्त्रण हिसाके प्रयोगद्वारा नहीं, बल्कि इन शक्तियोका प्रतिनिधित्व करनेवाली जनताकी उचित मांगो और आकाक्षायोकी पूर्ति द्वारा करना होगा। जो विभाजक शक्तियाँ अवतक स्वाधीनता प्राप्त करनेके समूचे ध्यानको एक ही ओर लगा देनेवाले कार्यकी ओर लगी हुई थी अब खुलकर खेलनेके लिए अवसर पायेगी। इस प्रकारकी प्रवृत्तियाँ अभी ही उभरती हुई नजर आ रही है । उदाहरणके लिए बम्बईके भविष्यके सम्बन्धमे काग्रेसजनोमें अभीसे मतभेद उत्पन्न हो गया है । एक दल उसे गुजरातका अग बनाना चाहता है तो दूसरा महाराष्ट्रका । प्रान्तके अन्तर्गत प्रादेशिक स्वायत्त शासनको स्वीकार करके आदिवासियोके पार्थक्यवादी आन्दोलनकी माँगका हमे सहानुभूतिपूर्ण हल ढूंढना होगा। विभिन्न प्रान्तोकी ईर्ष्याके उभड़नेका खतरा भी है और उनसे उत्पन्न होनेवाले प्रान्तीय झगड़ोका निपटारा करनेके लिए हमे अपनी पूरी बुद्धि और समझका उपयोग करना पडेगा । सबके ऊपर भूख और गरीवीकी समस्याको हल करना तो हे ही । वादा नहीं प्रत्यक्ष चाहिये अब हमे यह देखना है कि एक सुदृढ राज्यकी स्थापना किस प्रकार हो सकती है। आधुनिक उद्योग-धन्धोके विना ऐसे राज्यकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रिटिश शासनसे विरासतमे अशिक्षा, दरिद्रता, पिछड़े उद्योग-धन्धे तथा अत्यन्त पुराने ढंगकी कृषि-व्यवस्था ही हमे प्राप्त हुई है । हमे सभी काम नये सिरेसे आरम्भ करना है, किन्तु जनताके हार्दिक सहयोगके अभावमे हमारी प्रगति सम्भव नही। इस महान् निर्माण- कार्यमे हमे जनताकी शक्तिका प्रयोग करना है और उसमे दिलचस्पी एवं उत्साह पैदा करना है । यह सव तवतक सम्भव नही जबतक राज्य जनतामे नया विश्वास नही
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