१२९ राष्ट्रीयता और समाजवाद रायपन्थी आज जिस नुकतेपर पहुँच गये है उसको देखते हुए उनके साथ मिल-जुलकर काम करनेका सवाल ही नही उठता । कम्युनिस्ट संयुक्त मोर्चेके तभीतक कायल रहते हैं जवतक उनमे शामिल होनसे उनकी ताकत वढती रहे । जव कभी उनके दिमागमे यह ख्याल आता है कि क्रान्ति नजदीक आ गयी है तब वह संयुक्त मोर्चे हटकर अपना राग अलग अलापने लगते है। इसका कारण यह है कि वह क्रान्तिका नेतृत्व अकेले करना चाहते है जो संयुक्त मोर्चेमें शामिल रहकर नहीं हो सकता । समाजवादी एकता भी वह इसलिए नही चाहते कि विभिन्न दल मिल-जुलकर कुछ हासिल करे, बल्कि इसलिए कि इस तरह वह अपना प्रभाव बढ़ा सकते है और समाजवादी दलोपर अपना आधिपत्य जमा सकते है । जवतक आप उनको वेरोक-टोक काररवाई करने दें तवतक वह आपको क्रान्तिकारी मानेगे, लेकिन अगर आपने इसमे रुकावट डाली और अपनेको अलग रखनेकी व्यवस्था की तो आप तत्काल सुधारवादी और समाजवादियोमे फूट डालनेवाले हो जायेंगे । असलियत यह है कि यह क्रान्तिके नेतृत्वमे अपनी ही प्रधानता चाहते है । यदि यह सम्भव नही है तो यह क्रान्तिको ही असम्भव बनानेकी चेप्टा करेगे । दलके हित इनके लिए जनान्दोलनके हितोसे भी बढ़कर है । यह तो अपनेको क्रान्तिका तनहा ठेकेदार समझते है। इनको छोडकर सब सुधारवादी है, इसलिए अगर क्रान्ति हो तो इन्हीके नेतृत्वमें हो । इसीलिए क्रान्तिके जमानेमे वही संयुक्त मोर्चा इनको मजूर होगा जिसमे इनका प्राधान्य है। दूसरे तरहके मोर्चे क्रान्तिके लिए अहितकर है। उनको कमजोर करना और उनके नेतृत्वको बदनाम करना इन क्रान्तिके ठेकेदारोके लिए अत्यन्त जरूरी हो जाता है। जितनी साम्राज्य-विरोधी संस्थाएँ है उनपर कब्जा पाना और यदि इसमे सफलता न मिली तो उनको ध्वंस करना भी जरूरी हो जाता है । यह ध्वंसात्मक कार्य वक्त आनेपर 'क्रान्तिकारियो' के लिए मैदान साफ रखनेके लिए अत्यन्त जरूरी है । जबसे युद्धका प्रारम्भ हुआ है तबसे कम्युनिस्टोंका सम्पर्क जनतासे बहुत कम हो गया है । अब वह एक ही फ्रण्ट (मोर्चे) पर काम करते है, यह हे विद्यार्थी फण्ट । वह पार्टी जो अपनेको श्रमजीवी वर्गकी पार्टी कहती थी और दूसरोका इसी आधारपर मजाक उड़ाती थी कि उसके सदस्य निम्न-मध्य-श्रेणीके है आज स्वयं निम्न-मध्य-श्रेणी ( Petty bourg- eoisie ) की पार्टी हो गयी है। विद्यार्थियोमे काम करनको हम काफी महत्व देते है, लेकिन जनताका स्थान कोई दूसरा समुदाय नहीं ले सकता । मजदूर संस्थानोमे कम्युनिस्टो- का क्या स्थान है यह अखिल भारतीय मजदूर कांग्रेसके हालके अधिवेशनसे साफ हो गया है । एक बहुत दिनोका भ्रम दूर हो गया। हकीकत यह है कि वहाँ भी अन्य दल इनसे कई गुना ज्यादा है। किसानोमें इनकी खास जगह कोई कभी नही रही । वंगालके कुछ जिलोको छोड़कर किसानोमे इनका काम नहीके वरावर है । काग्रेसमे तो इनका कभी कोई विशेप स्थान रहा ही नही है । अव तो वह कांग्रेसके ही खिलाफ हो गये है । जव ऐसी हालत है तो विद्यार्थी-फ्रण्टपर आधिपत्य जमाना बहुत जरूरी हो जाता है । विद्यार्थियो- में यदि वहुमत नही है तो मतलववरारीके और तरीकोसे काम लेना चाहिये । डा० अशरफ साह्वने तो यहाँतक कहा कि इतिहासका तकाजा है कि विद्यार्थीसघके दो टुकड़े
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