११८ राष्ट्रीयता और समाजवाद के प्रतिकूल न हों किन्तु संयुक्तप्रान्तको छोड़कर किसी भी दूसरे प्रान्तमें एक पूर्ण प्रायोजना तैयार करनेकी कोशिश नही की गयी। वजारतके जमानेमें किसानोकी शिकायतोको सुनने और उनको रफा करनेका काम निरन्तर जारी था। इस तरह काग्रेसका सम्पर्क किसानोके साथ बराबर बना था और काग्रेस उसके दैनिक संघर्षमे हिस्सा लेती थी। मंत्रिपदका परित्याग करनेके बादसे यह सम्पर्क बहुत कम हो गया। किसानोकी सहायता करनेका एक ही तरीका नही है । यदि हमारी गवर्नमेण्ट नहीं है तब भी हम किसानोंको संगठित कर उनकी मांगोके लिए शान्तिमय लड़ाई लड़कर उनकी सहायता कर सकते हैं । स्वयंसेवकोके सघटनका काम भी बहुत जरूरी था, पर दो एक प्रान्तोंको छोड़कर इस दिशामे कुछ नही किया गया। कहातक कहा जाय, कांग्रेसकी नीतिको जनताको समझानेका भी काम प्राय नही ही किया गया। यह काम प्रायः वामपक्ष करता रहा और इसीलिए वे काफी तादादमे गिरफ्तार भी किये गये। सत्याग्रहके प्रारम्भके पूर्व ही लगभग पांच हजार राजनीतिक बन्दी हो चुके थे। इस संस्थामे दक्षिणपक्षके लोगोंकी संख्या बहुत थोडी है । दक्षिणपक्ष समझौतेकी आशा लगाये बैठा हुआ था । इसके अतिरिक्त साधारणत: काग्रेसजन सत्याग्रहके लिए किसी विशेष तैयारीकी जरूरत नहीं समझते और जब एक वार सत्याग्रह शुरू हो जाय तव तो उनके व्यालसे किसी दूसरे कामकी जरूरत ही नही रह जाती। एक जमाना था जब जेलका डर दूर करना जरूरी था, लेकिन आज तो काग्रेसने सबके लिए यह काम प्रासान-सा कर दिया है । जिसको देखिये वही आज सत्याग्रहकी धमकी देता है, इसीलिए महज जेल जानेका याज वह महत्त्व नही रह गया है । हम कई मजिले पार कर चुके है । अव हमको आगे बढना चाहिये । राजशक्ति कैसे मिलती है इसकी तस्वीर काग्रेसवालोके सामने नहीं रखी गयी है । इस कमीको हमे पूरा करना चाहिये । रामगढमे तो निश्चय हो चुका था कि काग्रेसका अगला कदम सत्याग्रह होगा, लेकिन वह बराबर टलता ही गया । हिन्दू-मुस्लिम सवाल महात्माजीको परेशान कर डालता था । उनको इसमे भी शक था कि देश कहांतक शान्तिके पथपर अन्ततक कायम रहेगा। इन दो कारणोसे उनको सत्याग्रह शुरू करनेमे हिचकिचाहट होती थी। इसी दुविधामे जब वे थे तव मईके महीनेमे फ्रासकी हार हुई । इस घटनाका गांधीपर गहरा असर हुआ । एक तो उन्होने लडाईके दौरानमे ब्रिटिश हुकूमतको परेशान न करनेका निश्चय किया, दूसरे अहिंसाकी व्याख्याका और विस्तार कर यह भी तय किया कि अब समय आ गया है जब उन्हे यह घोपणा कर देनी चाहिये कि जहाँतक उनका सम्बन्ध है वह आजाद हिन्दुस्तानमे फौज नही रखेगे और यदि वाहरी आक्रमण होगा तो उसका मुकाबला सत्याग्रहसे करेगे। यदि काग्रेस उनके विचारको स्वीकार करती है तो वह उसका नेतृत्व करेगे अन्यथा नही । वकिंग-कमेटीमे उन्होने उसकी चर्चा चलायी और जब उसके वहुत से सदस्य इस विचारसे सहमत नही हुए तब वह पृथक हो गये । फासकी हारके वाद कांग्रेसके नेतृत्वका एक बड़ा भाग विचलित हो गया। वह भीतरी अराजकता और वाह्य आक्रमणके भयसे पंगु हो गया, इसीलिए वह सत्याग्रह शुरू करनेको तैयार न था। महात्माजीके अलग होनेसे सुलह-समझौतेका रास्ता साफ हो गया था क्योकि उसका ख्याल था कि
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