११६ राष्ट्रीयता और समाजवाद' इस तरह आज क्रान्तिके मार्गमे काफी रुकावटें है तथापि इसमे सन्देह नहीं कि जव आर्थिक संगठन टूटने लगेगा और बेकारी वढेगी तब जनता क्षुब्ध होगी। इसलिए यदि युद्धकालमे क्रान्तिका सुअवसर नही मिलता तो युद्धके वाद तो अवश्य मिलेगा। लेकिन उसकी तैयारी तो एक अरसेसे शुरू हो जानी चाहिये थी। हिन्दुस्तानमे तो हमने वक्तकी काफी बर्बादी की। सत्याग्रह यदि नही शुरू हुआ था तो कमसे कम माकूल तैयारी तो करते । इस समय तो शहरी आजादीके सवालको लेकर सत्याग्रह हो रहा है। इससे कमसे कम युद्धका नैतिक विरोध प्रदर्शित होता है । स्वतन्त्र होनेके लिए हमको जनतामे जागृति उत्पन्न करना होगा और उसको सगठित करना होगा । वर्तमान सत्याग्रहको आधार बनाकर यदि हम सभी तैयारीमें लग जावे तो वडा काम हो। अगले लेखमें हम गत वर्पका सिंहावलोकन करेंगे और अपनी निश्चेष्टताकी कहानी सुनावेंगे। तदनन्तर हम कुछ ऐसे प्रश्नोंपर विचार करेगे जो हमारे रास्तेमे रुकावट डालते है। फिर सच्ची तैयारी किसे कहते है और उसका उपकरण और साधन कैसा हो इन विपयोपर हम विचार करेंगे। भारतकी स्वाधीनताका सवाल सन् १९३९-४० का सिंहावलोकन युद्धके खतरेकी अोर काग्रेसका ध्यान सबसे पहले सन् १९२७ मे गया था। जब इटलीने अवीसिनियापर आक्रमण किया तब यह खतरा और भी बढ़ गया और इसलिए सन् १९३६ मे काग्रेसने अपना यह निश्चय प्रकट किया कि वह साम्राज्यवादी युद्धमे भाग लेनेका विरोध करती है। त्रिपुरीका अधिवेशन एक दृष्टिसे बड़े महत्त्वका था क्योकि उसमे युद्धका विरोध करनेका निश्चय महज दुहराया ही नहीं गया था किन्तु साथ-साथ राष्ट्रीय माँगका प्रस्ताव भी पास किया गया था और यह कहा गया था कि अव समय पा गया है जब हमको स्वभाग्यनिर्णयके सिद्धान्तको लागू करना चाहिये । त्रिपुरीमे यह स्पष्ट कर दिया गया था कि जबतक साम्राज्यवाद और फैसिज्मका समान रूपसे अन्त नही कर दिया जाता तबतक ससारमे शान्ति स्थापित नही हो सकती, काग्रेस स्वतन्त्रता और शान्तिके मार्गका अनुसरण करना चाहती है, उसकी वैदेशिक नीति इसी आधारपर वननी चाहिये और इसलिए उसका यह निचश्य है कि वह साम्राज्यवाद और फैसिज्मसे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती। दु.खके साथ कहना पडता है कि राष्ट्रीय माँगका प्रस्ताव कार्यान्वित नही किया गया और पानेवाले खतरेका मुकाबला करनेके लिए तथा अपने निश्चयोको पूरा करनेके लिए देशको तैयार नही किया गया । मन्त्रिपद ग्रहण कर लेनेके वादसे कांग्रेसके एक भागमे १. 'संघर्ष' ६ जनवरी, १९४१ ई०
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