११० राष्ट्रीयता और समाजवाद विरोधी और अन्तरराष्ट्रीयताका पुजारी हूँ। किसी जातिके प्रति मेरा विद्वेप नही है । इङ्गलेण्डके शासकवर्गका मै अलवत्ता विरोधी हूँ, किन्तु अंग्रेजोके प्रति मुझे राग नहीं है । सब राष्ट्रोकी जनताका मै अादर करता हूँ, क्योकि मैं जानता हूँ कि प्रत्येक राष्ट्रकी प्रजा शान्तिप्रिय हुआ करती है, वह विद्वेशकी अग्नि प्रज्वलित नही करना चाहती । युद्धोंकी जिम्मेदारी उसपर नहीं है, किन्तु पूंजीपतियों और फौजी अफसरोपर है । हमारा कर्तव्य इन सब विचारोंके रखते हुए यदि इस समय हम आजादीके लिए सत्याग्रह करें तो हम किसी पहलूसे भी अनीति नहीं करेगे । एक वर्षकी नोटिस सचेत करनेके लिए क्या काफी नहीं है और यदि इसपर भी कोई नही सँभलता तो हम क्या करे ? मुझे भय है कि यदि हम इस प्रकारका अटल सिद्धान्त बना लेगे कि सकटमे फंसे रहनेपर शत्रुको परेशान न किया जाय तो कभी भी आजाद न होगे । साम्राज्यवादका मुकाबला करना आसान काम नही है, तिसपर यदि हम ऐसे सिद्धान्तपर अमल करने चलेगे तो लक्ष्यतक पहुँचना असम्भव हो जायगा । उस हालतमे हमको स्वराज्यकी पाशा न रखनी चाहिये । मैने पहले ही साफ कर दिया है कि महज प्रतिपक्षीको परेशान करनेकी गरजसे अान्दोलन करना बचपना होगा, लेकिन अपने लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए प्राये सुनहरे अवसरोंको खोना भी गलती होगी। किसी ठोस कारणसे आन्दोलनको शुरू न करना ठीक हो सकता है किन्तु केवल इस आधारपर अपने निश्चयको स्थगित कर देना ठीक नहीं । श्रद्धा जरूरी चीज है, लेकिन उसे तर्कके आश्रित होना चाहिये । सिपाहीको भी पूछनेका हक है । भाड़ेके सिपाहियोकी वात दूसरी है, हालांकि इस नये जमानेमे वह भी कभी-कभी पूछ बैठते है। लेकिन अपनी इच्छासे सिपाहीका वाना लेनेवाले लोगोकी शंका तो दूर करनी ही होगी। इस नये युगमे 'सैनिकको कारण पूछनेका अधिकार नहीं' ( There's not to reason why ) वाली बात गलत होती जाती है । इसमे शक नही जबतक कोई किसी संस्थामे है उसको अनुशासनकी रक्षा करनी होगी और सेनापतिके आदेशोका पालन करना होगा, लेकिन अपने दिलकी बात कहनेका हक तो उसे मिलना चाहिये। कार्यकर्ताओंसे अपील इस लेखके लिखनेका एक कारण और है । मुझे काग्रेसके सदस्योमे निश्चेष्टता या जानेका भय । कही ऐसा न हो कि जबतक अपना नम्बर न आये तवतक लोग हाथपर हाथ धरे बैठे रहे । मैं देखता हूँ कि ऐसा हो रहा है । जवसे मन्त्रि-पदका त्याग हुआ है तवसे किसानोकी शिकायते दूर करनेकी ओर ध्यान नही दिया जा रहा है । युद्धके कारण कारखानोके मजदूरोकी आर्थिक कठिनाइयाँ बढ गयी है, इस ओर भी ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है । मैं चाहता हूँ कि काग्रेसजन चिरपरिचित रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करते हुए इन जरूरी कामोको भी करते रहे । मेरी अपील समाजवादियोसे विशेष रूपसे
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