व्यक्तिगत सत्याग्रह और आजादीकी लड़ाई १०६ परेशानी कैसी महात्माजीने अपने वक्तव्यमे कहा है कि मै स्वयं सत्याग्रह नही करना चाहता । इस निश्चयका कारण बताते हुए महात्माजी कहते है कि इसका कारण यह भी है कि काग्रेस गवर्नमेण्टको परेशान नही करना चाहती। यह थ्योरी सत्य और अहिंसा-सम्मत बतायी जाती है । हमारी अल्पबुद्धिमे यह नही आया कि इसका सत्य और अहिंसासे क्या सम्बन्ध है, जब हम सत्याग्रह किसीको परेशान करनेकी गरजसे नही करना चाहते है, बल्कि अपने उद्देश्यको हासिल करनेके लिए ही करना चाहते है । महज छेड़छाड़के लिए कोई आन्दोलन करना नामुनासिव होगा यह हम मानते है, उससे हमारा ही नुकसान है। यह तो वही मसल हुई कि दूसरेकी नाक काटनेके लिए हम अपनी नाक कटवानेके लिए तैयार है । जव युद्ध प्रारम्भ होनेपर वकिंग-कमेटीने अपना लम्बा वक्तव्य निकाला था और बादमे रामगढ-काग्रेसने अपना प्रस्ताव पास किया था, जिसमे बताया गया था कि यह युद्ध साम्राज्यवादी है और अगला कदम सत्याग्रहका होगा, उस समय हमको प्रतिपक्षीको परेशान करने का ख्याल न था। जब कभी हम स्वराज्यकी लडाई छेड़ेगे, साम्राज्यशाहीको परेशानी होगी ही, लेकिन क्या हम जन्मसिद्ध अधिकारको छोड देगे ? क्या हम यह समझे कि जवतक युद्धमे प्रतिपक्षीके हारनेके लक्षण नही दिखायी पडे तवतक तो सत्याग्रह करना सत्य और अहिसाके प्रतिकूल नही है, लेकिन जब हमारा प्रतिपक्षी शत्रुसे विताडित होने लगे और उसके पराजयकी आशका हो जावे तब गुलामोको लडाई रोक देनी चाहिये । जव हमारा प्रतिपक्षी लडाईमे सँभल जाय, यह तर्क हमारी बुद्धिमें नही आता । हिन्दुस्तानकी आजादी ही अग्रेजोके लिए काफी परेशानीकी वात है, वह ऐसा ही समझते है, लेकिन हम तो हिन्दुस्तानको आजाद करके अग्रेज कौमपर एहसान करेगे । मै यह वात मजाकमे नही कहता, क्योकि मेरा विश्वास है कि जो कौम दूसरोको गुलाम वनाती है वह अन्तमे खुद गुलाम हो जाती है, इसलिए स्वराज्यकी लडाई ऐसे मौकेपर छेडना परेशान करना नही है। हमारी लडाई तो शान्तिमय है। हम उनके देशपर तो आक्रमण कर नही रहे है, केवल अपने देशको आजाद करना चाहते है, इसमे किसीको परेशान करनेका सवाल कहाँ उठता है । खेल और कुश्तीके कायदे ऐसे हो सकते है, लेकिन आजादीके जगमे इन कायदोकी गुजाइश नहीं है, क्योकि प्रतिपक्षी किसी कायदेको माननेको तैयार नही है। हमारी लडाई अहिंसाकी है, लेकिन हमारा प्रतिपक्षी हिंसाका आश्रय लेता है। जिस समय वह सकटसे घिरा हुअा हे उस समय भी वह हमारे साथ इन्साफ करनेको तैयार नहीं है अल्प समुदायोका बहाना कर टालमटोलकीवाते करता है। हिन्दुस्तानकी इकाई तोडने और प्रजातन्त्रकी भावनाको दवानेकी चाल चलता है। हमारा सकल्प पहले ही हो चुका है । उसके होनेसे केवल भारतका ही नही बल्कि अग्रेज जातिका भी कल्याण है। यह सकल्प दूसरोको नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता, केवल अपनी चीज वापस चाहता है इसमे अधर्म कहाँ है ? मैं तो इसे धर्म-युद्ध ही समझता हूँ । मै जीवनमे नैतिक आचरणको बड़ा महत्त्व देता हूँ। मैं संकीर्ण राष्ट्रीयताका कट्टर
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