पाकिस्तानकी योजना देशके लिए आत्मघातक है १०१ पसन्द नहीं करते । मौलवी फजलुलहक साहव भी इस योजनापर मुग्ध नही है । वह अव भी भारतीय एकताकी वात करते है। सिकन्दर हयातखॉ भी इसके हामी नही है । दूसरे 'लीगर' जो इसका राग अलापते थे उनकी असली मशा थी कि यह काम ब्रिटिश सत्ताकी मददसे हो, पर अव जव लडाईकी शक्ल बदली और इसमे भी शक होने लगा कि वह सत्ता इस देशमें रह भी जावेगी तो धीरे-धीरे उन्होने हिन्दुस्तानकी हिफाजतके लिए एक नेशनल गवर्नमेण्ट कायम करनेका नारा वुलन्द करना शुरू किया। ज्यादातर तो धमकीके लिए पाकिस्तानकी योजना बनायी गयी है। इसमे असलियत कम है, लेकिन अगर मुसलिम लीगका इसपर अनुरोध हो तो हमको इसका विरोध करना ही पडेगा । प्रत्येक समुदायकी सस्कृतिकी रक्षाके लिए कांग्रेस वचनबद्ध है और काग्रेसने यह भी स्वीकार किया है कि अल्प समुदाय अपने अधिकारोकी रक्षाके लिए जो व्यवस्था चाहेगे वह कर दी जावेगी। इससे अधिक और क्या किया जा सकता है ? मुसलमान प्रान्तोमे बँटे हुए है । कजक, उजवेग, ताजिक आदिकी मिसाल यहाँ लागू नहीं होती। सरहदी सूवे और वलूचिस्तानको छोड़कर कोई ऐसा प्रान्त नहीं है जहाँ खालिस मुसलमान ही वसते हो । शायद यह सूवे अलग होना न चाहेगे । और सूवोमे वसनेवाले मुसलमानोंकी तुलना रूसी साम्राज्यके यहूदी, पोल, लेट ( Letts ), स्थोनियन आदि लोगोसे की जा सकती है। कुछ सूवोमे तो इनकी आबादी हिन्दुप्रोसे ज्यादा है । वहाँ तो इनके लिए कोई दिक्कत नहीं है, इसलिए इन सूवोका शुमार न होना चाहिये । शेष सूवोमे जहाँ यह अल्पसख्यामे है वहाँ इनके अधिकारोकी रक्षाकी व्यवस्था की जायगी। रूसमे यहूदी, लेट, स्थोनियनके अधिकारोकी जिस प्रकार रक्षा की गयी है उस प्रकार इनकी भी होनी चाहिये । इन जातियोके अपने देश न थे, यह साम्राज्यमे फैले हुए थे, इसलिए इनको स्वभाग्यनिर्णयका अधिकार नही दिया गया । भारतीय कम्युनिस्टोंकी भूल हमने ऊपर दिखलानेकी कोशिश की है कि रूसका उदाहरण यहाँ लागू नहीं होता । तिसपर भी हिन्दुस्तानकी कम्युनिस्ट पार्टीने सन् १९३१ से ही समस्त राष्ट्रीय अल्प- समुदायोको आत्मनिर्णयका अधिकार दे रखा है । रूसमे अलग होनेका हक भी शामिल है। यह उनके उद्देश्यकी घोपणा ( draft platform ) मे है। आँख मूंदकर नकल करनेका यही नतीजा है । यह वात होती इसलिए है कि सोवियट यूनियनकी नीतिको कोमिण्टर्न ( Third International ) विना विचारे अपनाती है और भिन्न-भिन्न देशोकी कम्युनिस्ट पार्टियाँ उसके फैसलेपर चलनेको वाध्य है । प्रत्येक पार्टीको देश- कालका विचार कर अपनी नीतिको स्थिर करनेकी स्वतन्त्रता होनी चाहिये । दूसरे देशके लिए जो नीति उपयुक्त है उसे यन्त्रवत् अपने यहाँ लागू करना पड़ता है । लेनिनकी शिक्षा थी कि कोमिण्टर्न समान नियमो तथा संघर्पकी एक-सी नीतियोके आधारपर नही निर्मित हो सकता । जबतक राष्ट्रीय विभिन्नता मौजूद है और यह भेद वहुत समयतक कायम रहेगे-संसारमे मजदूर जमातके अधिनायकत्व होनेके वाद भी-तबतक
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/११४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।