१०० राष्ट्रीयता और समाजवाद यह जातियाँ रूसियोंको अविश्वासकी दृष्टिसे देखती श्री; क्योंकि स्म ( Great Russia ) मे प्रतिक्रियावादियोका बोलवाला था। उनके विश्वासको प्राप्त करनेके लिए लेनिनके लिए यह आवश्यक था कि वह पृथक होनेके अधिकारको भी स्वीकार कर लेता । यहाँपर यह कहना आवश्यक है कि इस प्रश्नपर सोशल डेमाटोमे एकमत न था। रोजालक्जेमवर्ग इस नीतिका कट्टर विरोध करती थी। वह स्वभाग्यनिर्णयके सिद्धान्तको खतरनाक समझती थी। उनका कहना था कि इसमे पूंजीपतियोका ही प्राधिपत्य वढता है । लोकमतको प्रभावित करनेके लिए पूंजीपतियोके पास हजार तरीके हैं। जिस तरह वोट लेकर समाजवादकी स्थापना नहीं हो सकती उसी तरह उनका कहना था कि इस प्रकार हम जनताको केवल अपनी-अपनी जातिके प्रतिगामी पूंजीवादियोके हाथ सौप देंगे। इस अधिकारके वर्तनसे रूस छिन्न-भिन्न होने लगेगा। समाजवादका इनमे कोई उपकार न होगा, उल्टे क्रान्ति-विरोधी शक्तियाँ उत्तेजित होगी। अन्तमे ऐसा हुया भी। फिनलैण्ड पीर युक्रेनके पूंजीवादियोने क्रान्तिका विरोध करनेके लिए जर्मनीसे सहायता माँगी और विवश होकर सोवियट रूमको फौज भेजकर हस्तक्षेप करना पड़ा। सिद्धान्तमे तो पृथक होनेका हक मान लिया गया, पर जब कभी किसी जातिने इम हकको हासिल करनेकी चेप्टा की तो उसे दवा दिया गया। इस तरह हम देखते है कि सोवियत रूसमे इस नीतिपर कभी अमल नही किया गया। यह तो अवसरवादिताकी नीति थी और उससे कुछ काम भी निकला, किन्तु वास्तविक नीति तो सदा यही थी कि कोई सोवियट संघसे वाहर न जाने पावे । रूसकी कम्युनिस्ट पार्टीकी सातवी कांग्रेसमे स्टालिनने कहा था-"नेशनल सोवियट रिपब्लिके अपनी सत्ताको रक्षा तभी कर सकती हैं और पूंजीवादपर गालिव आ सकती है जबतक कि वह एक संघमे सम्मिलित है ।" वात सच थी, पर स्वभाग्यनिर्णयका सिद्धान्त प्रत्येकको आत्महत्या करनेका भी हक देता है। हमारे देशमे तो अवसरवादिताकी दृप्टिसे भी इसे स्वीकार करनेकी जरूरत नही है । पजावी, सिन्धी आदिमे से किसीने भी ऐसी मांग पेग नही की है और वह पेश क्यो करे वह सव समान रूपसे ब्रिटिग साम्राज्यवादके अधीन है। उन सबके दुख- सुख एकसे है । उनमेसे एक दूसरेपर अत्याचार नही कर सकता। उनकी सस्कृति और भापापर यदि कोई आघात करता है तो वह विदेशी सत्ता है। ऐसी अवस्थामे इनमेसे कोई स्वतन्त्र राष्ट्रकी माँग वयो पेश करे ? इसके अतिरिक्त भारतीय एकताको भावना प्रवल होती जाती है और सब इसका अनुभव करने लगे है कि समवेत चेप्टासे ही भारत स्वतन्त्र किया जा सकता है और अर्जित स्वतन्त्रताकी रक्षा करनेमे समर्थ हो नकता है। आजकी हालतमे तो यह वात और साफ हो गयी है । अव जमाना छोटे राष्ट्रोका नही है । पाकिस्तानकी मॉगका रहस्य यह माँग कुछ मुसलमानोकी अोरसे पेश की गयी है । मुसलिमलीगका यह दावा कि वह सव मुसलमानोका प्रतिनिधित्व करती है झुठलाया गया है। आजाद मुसलिम कानफरेन्सकी सफलता इसका प्रमाण है । बंगालके मुसलमान तो पाकिस्तानकी योजनाको ?
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