पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/९६

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राष्ट्रभाषा पर विचार बहुत-कुछ नजदीक हो। जिन लफ्जों को अधिक से अधिक लोग जानते हैं, वे कहीं से भी आये हों, राष्ट्रभाषा के ही समझे जाने चाहिए। उर्दू के बारे में उनकी दूसरी शिकायत यह है कि उर्दू की लिपि परदेश से आई हुई है, अवैज्ञानिक है, और उसका प्रचार बिलकुल परिमित है। राष्ट्रभाषा की लिपि तो स्वदेशी ही होनी चाहिए। अधिक से अधिक लोग समझ सकें, वैसी ही होनी चाहिए। और अगर वह वैज्ञानिक है, तो और भी अच्छा। कम से कम राष्ट्रलिपि ऐसी न हो, कि जिसमें देशी ध्वनियाँ ठीक-ठीक व्यक्त ही न हो सकें, और जो देशी शब्दों को तोड़-मरोड़कर उनका रूप ही बिगाड़ डाले। सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि राष्ट्रभाषा का सवाल केवल वैज्ञानिक नहीं है। वह मुख्यतः सामाजिक है। उसमें राजनैतिक और ऐतिहासिक बातें भी आ सकती हैं, लेकिन मुख्यतया राष्ट्रभाषा का सवाल सामाजिक और राष्ट्र संघटन का है । एक राष्ट्रीयता को दृढ़ करने की दृष्टि से ही राष्ट्रभाषा का महत्त्व है। हमें एक राष्ट्रीयता के महत्त्व के तत्त्व प्रथम सोच लेने चाहिएँ। हिंदुस्तान एकजिन्सी राष्ट्र नहीं है। यह भिन्न जाति के, भिन्न-भिन्न संप्रदाय के, भिन्न भाषाएँ बोलनेवाले लोगों का, लेकिन एक ही समृद्ध और संगठित संस्कृति का, एक राष्ट्र' बन चुका १-यदि अपराध क्षमा हो तो इतना और निवेदन कर दिया जाय कि उक्त राष्ट्र की एक 'राष्ट्रभाषा' भी कभी की बन चुकी है और