पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/८४

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डॉक्टर ताराचंद और हिंदुस्तानी वह भाषा थी, जिसका साहित्यिक भाषा के रूप में सबसे पहला विकास हुआ। १४ वीं सदी के आखिरी पचीस सालों से लेकर अब तक हमें हिंदुस्तानी (दक्खिनी उर्दू) का सिलसिलेवार इतिहास मिलता है। दूसरी तरफ १६ वीं सदी से पहले की ब्रज- भाषा का इतिहास बहुत ही शंकास्पद है। ७-आइये, १६ वीं सदी से पहले के तथाकथित ब्रजभाषा- साहित्य का कुछ विचार किया आय । (अ) पृथ्वीराजरासो' का रचयिता चन्दबरदाई वह पहला ५--डाक्टर साहब सम्भवतः 'बाबावाक्यं प्रमाण के पथिक है.और साहित्यिक भाषा' एवं 'भाषा' के भेद से सर्वथा अनभिज्ञ हैं। अन्यथा उनकी लेखनी की जीभ से ऐसी भोंड़ी बात न निकलती। हिन्दुस्तानी के प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थ कहाँ हैं ! 'दक्खिनी' का साहित्यिक भी इतना प्राचीन कहाँ है ? ५-डाक्टर साहव को कुछ 'ग्वालियरी' का भी पता है या यों ही 'दक्खिनी' बूक रहे हैं । अच्छा होता यदि डाक्टर महोदय ग्वालियर के राजा मानसिंह के मानकुतूहलम्' का अवलोकन और संगीत- परम्परा का कुछ अध्ययन करते, एवं यह भी जान लेते कि कुछ विद्वान् महाराष्ट्री ( गीत-भाषा) को भी शौरसेनी का ही एक विकसित रूप समझने लगे हैं। ( सन् १६४२, देखिए-इंडो आर्यन एंड हिन्दी, गुजरात वाक्यूलर सोसाइटी, अहमदाबाद, सन् १६४२, पृ० ८५-६.) ६-ध्यान देने की बात है कि उनके विरोधी ने कहीं भूलकर भी 'पृथ्वीराजरासो' अथच 'चन्दबरदाई' का नाम नहीं लिया है; परन्तु हिन्दुस्तानी के पुरोहित पंडित ताराचन्द उसी को जाली ठहराने में लगे हैं ! क्यों ? तो क्या अर्थी सचमुच दोष को नहीं देखता ? हिन्दु तानी के उपासक सिद्ध तो यही करते हैं।