पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/८१

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राष्ट्रभाषा वे हिन्दी साहित्य के किसी भी प्रामाणिक इतिहास में देखी जा सकती हैं। पत्र-लेखक के इस पत्र का जो अंश प्रस्तुत प्रश्न से सन्वन्ध नहीं रखता था, उसे मैंने निकाल दिया है। यह पत्र मैंने काका साहव कालेलकर के पास भेज दिया था। उन्होंने इसे डाक्टर ताराचंद के पास भेजा था । डाक्टर ताराचंद ने इसका नीचे लिला जबाब भेजा है । जो अपनी कथा आप कहता है मैंने अपनी जो राय दी थी कि ब्रजभाषा का साहित्य सोल- हवीं सदी से ज्यादा पुराना नहीं है, उसके कारण इस प्रकार हैं:- १-व्रजभाषा एक आधुनिक भाषा है, जो तृतीय प्राकृत या 'न्यूइंडोआर्यन' वर्ग की मानी जाती है । इस वर्ग का जन्म मध्यम प्राकृत या 'मिडिल इंडो-आर्थन' से हुआ है। दुर्भाग्य से मध्यम और तृतीय के बीच की अवस्थाओं का निश्चित रूप से कोई पता नहीं लगाया जा सकता, लेकिन ज्यादातर विद्वान् इस बात में एक राय हैं कि 'मध्यम प्राकृत' का लमय ईस्वी सन पूर्व ६०० से ईस्त्री सन् २००० तक रहा। २- मध्यम प्राकृतों को, जो एक जमाने में सिर्फ बोली भर जाती थीं, महाबीर और बुद्ध द्वारा चलाये गए धार्मिक आन्दोलनों के कारण साहित्यिक, विकास करने का उत्तेजन मिला ! इन प्राकृत भाषाओं में पाली सबसे महत्व की भाषा बन गई, क्योंकि वह बौद्धों के पवित्र धर्मग्रंथों को लिखने के लिये माध्यम स्वरूप अपनाई गई थी। महत्त्व की दृष्टि से दूसरा स्थान अर्धमागधी का रहा, जिसमें जैनियों के धर्मग्रंथ लिखे गये। इनके सिवा भी कुछ और प्राकृत भाषाएँ उन दिनों प्रचलित थीं मसलन्, महाराष्ट्री, जिसमें गीत और कविता लिखी जाती थी और शौरसेनी, जिसका उप-